उद्योग, ग्रामोद्योग पूर्वक संपन्न कर लेने की स्थिति को और कृषि, गोपालन विधियों से पूरे गाँव की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होना सहज है। जिस गाँव में कोई विशेष उत्पादन नहीं हो पाता है उसको अन्य स्रोतों से उत्पादन जो अधिक है उसे देकर वांछित वस्तुओं को पा लेना भी बहुत सहज है ऐसी स्थिति में आवर्तनशीलता पुन: सहवास और संबंध विधि से स्पष्ट हो जाता है।
पूरे गाँव में आवर्तनशीलता को इस प्रकार पहचानना आवश्यक और सहज है कि प्रत्येक परिवार समूचे ग्राम परिवारों के साथ एक दूसरे को किसी संबंध से पहचानते हैं, मूल्यों का निर्वाह करते हैं मूल्यांकन करते हैं। सदा तृप्ति मिलती ही रहती है। दूसरा श्रम मूल्यों के आधार पर वस्तु मूल्यों का मूल्य निर्धारित करते हैं और परस्पर विनिमय करते हैं। हर परिवार में आवश्कता से अधिक उत्पादन कार्य स्पष्ट रहता ही है। इस प्रकार वस्तुओं का उत्पादन, विनिमय और न्याय-सुरक्षा कार्यकलाप एक दूसरे से पूरक विधि से आवर्तनशील होते हैं। क्योंकि श्रम नियोजन, श्रम मूल्य में सामरस्यता, संबंध और मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य में सामरस्यता और उसका नित्य गति के रूप में व्यवहार और विनिमय एक-दूसरे के लिए पूरक होते हैं और नित्य गतिशील रहते हैं इस प्रकार इसकी आवर्तनशीलता समझ में आती है।
इसी क्रम में परिवार सहज सहवास, ग्राम मोहल्ला सहज सहयोग, राष्ट्र और विश्व परिवार सहज सहअस्तित्व के रूप में आवर्तनशील अर्थ व्यवस्था को जानना-मानना-पहचाननना-निर्वाह करना नियति सहज समीचीन है। परिवारमूलक विधि से एक ग्राम और ग्राम मूलक विधि से एक परिवार व्यवस्था पांचों आयामों के रूप में वैभवित होना सहज है। यही पाँचों आयामों की परस्पर पूरकताएं आवर्तनशीलता को प्रमाणित करना मानव का सहज अपेक्षा और जागृति क्रम घटना की समीचीनता अध्ययनगम्य हो जाता है। एक ग्राम व्यवस्था में न्याय सुरक्षा कार्य में भागीदारी, विनिमय कोष कार्यो में भागीदारी निरंतर समीचीन रहता है। परिवार व्यवस्था में जीना प्रमाणित रहता है। इन तीनों आयामों के लिए स्रोत रूप में स्वास्थ्य संयम कार्यों में भागीदारी और शिक्षा संस्कार कार्यों में भागीदारी की आवश्यकता, सम्भावना और प्रयोजन समीचीन रहता ही है। हर समझदार परिवार मानव कहे गये पाँच आयामों में भागीदारी को निर्वाह करने योग्य होता ही है। इसका स्रोत शिक्षा-संस्कार विधि से सम्पन्न होने की व्यवस्था है।
समूचे व्यवस्था का अर्थात् एक परिवार से विश्व परिवार, मानव व्यवस्था को पहचानने-निर्वाह करने के क्रम में दस सीढ़ियों में पहचानना सहज है। यथा (1) परिवार सभा व्यवस्था, (2) परिवार समूह सभा व्यवस्था (3) ग्राम परिवार सभा व्यवस्था (4) ग्राम समूह परिवार सभा व्यवस्था (5) ग्राम क्षेत्र परिवार सभा व्यवस्था (6) मंडल परिवार सभा व्यवस्था (7) मंडल समूह परिवार सभा व्यवस्था (8) मुख्य राज्य परिवार सभा व्यवस्था (9) प्रधान राज्य परिवार सभा व्यवस्था और (10) विश्व राज्य परिवार सभा व्यवस्था।