1.0×

का अनुभव करते हैं। इस ढंग से बहुत सारी बढ़िया चीजें हमारे हाथ लग गयी इसका नाम दिया स्वायत्तता। मैं अपने में स्वायत्त हुआ इसलिए आप भी हो सकते हैं। जब हम स्वायत्त हुए तो हमारे बाद इस संसार को हम अर्पित कर सकते हैं, समझा सकते हैं, बोल सकते हैं, फलस्वरूप उसको एक वांङ्गमय दस्तावेज रूप देना शुरू किया। पहला दस्तावेज हुआ – ‘मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद’। मध्यस्थ दर्शन को चार भाग में ध्रुवीकृत किया।

पहला भाग का नाम दिया है- ‘मानव व्यवहार दर्शन’। दूसरा भाग का नाम है - ‘कर्म दर्शन’। तीसरा भाग का नाम है – ‘अभ्यास दर्शन’। चौथे भाग का नाम है – ‘अनुभव दर्शन’।

इस ढंग से चार भाग में पूरा दर्शन को लिखा। इनका मूल तत्व है मध्यस्थ दर्शन। अस्तित्व में सम, विषम और मध्यस्थ शक्तियाँ अर्थात् गतियाँ हैं। इसके अपने-अपने ढंग के परिणाम हैं। जिसमें से मध्यस्थ बल और शक्ति वैभवित होना ही मानव परंपरा का अद्भुत ध्येय है। इससे मैं भी चमत्कृत हुआ। अभी तक जितने भी वैज्ञानिक, ज्ञानी, अज्ञानी जिनको भी इसकी गंध लगी है वो चमत्कृत होते ही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सम, विषम शक्तियों को मानने की जगह में है मध्यस्थ शक्ति, मध्यस्थ बल को कोई प्रयोजन के रूप में समझना अभी तक बना नहीं है। मैं सोचता हूँ यह बहुत बड़ी भारी कमी और खामी रह गयी। इसलिए पुनर्विचार करने के लिए जरूरत आ गयी तो मध्यस्थ बल, मध्यस्थ शक्ति, मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ जीवन इस चारों बातों को चार तथ्यों को समझने समझाने का कार्य किया है इसी का नाम है - “मध्यस्थ दर्शन”।

सहअस्तित्ववाद को जब हम स्पष्ट करने के लिए तीन स्वरूप में तीन शीर्षक में तैयार हुआ। पहला – “समाधानात्मक भौतिकवाद” । इसका ध्रुव बिन्दु है :- पूरा का पूरा भौतिकता और रासायनिकता ये अपने में ‘त्व’ सहित व्यवस्था के रूप में प्रकाशित है। समग्र व्यवस्था में ये भागीदारी करते ही हैं। चैतन्य प्रकृति के साथ भी पूरक हैं। जड़ प्रकृति, जड़ प्रकृति के साथ भी भागीदारी करते हैं। इसको स्पष्ट करने की कोशिश की है। अभी मानव के पास जो भी वाद हैं वो संघर्षात्मक अर्थात् द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है। जबकि सहअस्तित्व सहज स्थिति-गति में कोई झगड़ा नहीं है, विद्रोह नहीं है, छीना, झपटी नहीं है, एक दूसरे के लिए पूरक हैं, एक उत्सव है, एक खुशियाली है, निरंतर विकास है, इस बात को समझाने की कोशिश की है। वांङ्गमय तो वांङ्गमय ही है। किन्तु आदमी, आदमी से ही समझेगा मेरे अनुसार। वांङ्गमय में तो कोशिश ही हो सकती है। इसमें मूल मुद्दा ये है विज्ञान सम्मत विवेक; विवेक सम्मत विज्ञान विधि से तर्क को प्रस्तुत किया है। विवेक का तात्पर्य है प्रयोजन की पहचान। प्रयोजन यदि समझ में आता है, उसकी पहचान हो जाती है तो उसका विश्लेषण हम करेंगे। प्रयोजन समझ में नहीं आता है तो हम विश्लेषण करते जाएं क्या

Page 13 of 95
9 10 11 12 13 14 15 16 17