भूमिका
मानव इस धरती पर कब आया है यह निश्चित नहीं है। मानव है कि नहीं है? इस बात पर कोई शंका नहीं होती; क्योंकि मानव होने का हम लोग जीवित प्रमाण हैं। पर मानव क्या है? इस बात का हमें आज तक पता नहीं था। स्वयं को खोजते हुए, जानने का प्रयास करते हुए मानव को सदियाँ बीत गयी है । अपने ही आंतरिक स्वरूप को देखने, समझने के लिए मानव तरस गया है। अपने परिचय को जानने के लिए मानव तृषित है और हजारों वर्षों से प्रयासरत भी है आज दुनिया में रासायनिक तथा भौतिक शोधों के ढेर लगे हैं किन्तु मानव के बारे में अभी तक पता नहीं है अर्थात् मानव का अध्ययन नहीं हो पाया।
ए. नागराज हमारे जैसे ही एक व्यक्ति हैं; वे अमरकंटक की एकान्तवादियों में जो भारत का सुप्रसिद्ध तीर्थ, नर्मदा नदी का उद्गम स्थल, मेकल पर्वत की हरी-भरी गोद में मानव के स्वरूप को खोजने चले आये। मैसूर प्रांत के अपने हरे-भरे गांव अग्रहार को छोड़कर श्री नागराज जिन्हें अब बाबाजी कहते हैं कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढने आये थे। घोर जंगल, घोर शीत, वर्षा, जंगली जानवर, भोजन की व्यवस्था नहीं और तमाम असुविधाओं में जीकर वे अनुसंधान करते रहे। भारत के सुप्रसिद्ध श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य श्री चंद्रशेखर भारती द्वारा दीक्षित श्री नागराज जी परंपरानुसार विधियों से तप करते रहे। अपने अनुसंधान के क्रम में उनको समाधि की स्थिति प्राप्त हुई। किन्तु अपने प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलने के कारण उन्होंने "संयम" किया। संयम करने पर बाबाजी को पूरा सहअस्तित्व समझ में आ गया। सहअस्तित्व में शरीर व जीवन के संयुक्त रूप में मानव भी समझ में आ गया, अस्तित्व में व्यापक सत्ता जिसे हम ईश्वर सत्य ब्रह्म आदि नामों से पुकारते हैं उसी में जड़-चैतन्य प्रकृति होना अनुभव हो गया। अस्तित्व में संपूर्ण व्यवस्था समझ में आ गयी उन्होंने देखा कि संपूर्ण प्रकृति सत्ता में (परमात्मा में) डूबी है, भीगी है, घिरी है।
साधना क्रम से ही उनके पास एक ओर देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. सी. व्ही. रमन, परमाणु आयोग के अध्यक्ष डॉ. भाभा जैसे लोग भी आये तो दूसरी ओर साधारण अनपढ़ कहे जाने वाले ग्रामीण भी आये। सन् 1976 से अपने अनुभव को उन्होंने अपने पास आने वाले लोगों को बताना शुरू किया। उन्होंने सत्य को कहना शुरू किया। जीवन की सच्चाइयाँ जो उनके श्रीमुख से निःसृत हुई उनको कुछ लोगों ने समझकर "जीवन विद्या" के नाम से शिविरों में अध्ययन कराना प्रारंभ किया है। हम लोगों ने बाबाजी से आग्रह किया कि वे अस्तित्व को जीवन को जैसा समझे हैं, अपने श्रीमुख से बोलें ताकि एक प्रामाणिक दस्तावेज मानव जाति के लिए उपलब्ध रहे। तब बाबाजी ने मध्यप्रदेश के बस्तर क्षेत्र में चारामा के पास आंवरी आश्रम में जीवन विद्या को तीन दिनों तक प्रस्तुत किया।