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जगह में निरंतर न्याय प्रदायी क्षमता को नियोजित करते रहेंगे, न्यायपूर्वक जीते रहेंगे, न्याय के लिए जियेंगे इसकी निष्ठा। इस ढंग से न्याय, धर्म, सत्य के लिए निष्ठा होगी और कहीं तो निष्ठा होते हमने देखा नहीं। पूजा, पाठ, ध्यान में निष्ठा ये सब जिस आवश्यकता के लिए हम करते हैं उसी को बुलंद करता है। उसी को वह वृहद बना देता है। इसके बाद है तीव्र जिज्ञासा। कहा गया है कि सर्वमोक्ष के लिए भी यही सब किया जाता है। इसी को अनादि काल से शुभ कार्य मानते आये हैं। लोक प्रचलन में इसे स्वीकृति दी है, सम्मान दिया है, इससे बहुत लोगों को राहत भी मिलती है। तात्कालिक राहत मिलने मात्र से हम व्यवस्था में जी गये ऐसा होता नहीं। पूजा, पाठ, ध्यान आदि चीजों पर मुझे अविश्वास है ऐसी बात नहीं है किन्तु उसकी एक सीमा है वहाँ तक ही वह प्रभावशाली है और उसके आगे मोक्ष की जो कामना होती है अंतिम मंजिल समाधि है जिसमें न पाने की बात रहती है न खोने की।

इस तरह हम निष्कर्ष पर आये कि भक्ति विधि से, विरक्ति विधि से, संग्रह विधि से कोई व्यवस्था उपजती नहीं है। तो मनुष्य कैसे जीये? समाधान , समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पूर्वक जिया जाये यही मानवीयतापूर्ण जीने की कला का स्वरूप बनता है। इसमें मैं जीकर देखा हूँ यह सार्थक है आप भी जी सकते हैं। हम इस बात पर पहुँच गये कि हर व्यक्ति को इसे जीकर प्रमाणित करना है। सार्थकता सबको स्वीकार है सबको वरेण्य है। तो मानवीयतापूर्ण आचरण मानव जाति के लिए सार्थक है। अस्तित्व में हर एक इकाई व्यवस्था में रहना चाहती है यही उसका धर्म है। मानव भी व्यवस्था में जीना चाहता है। इस आधार पर मानवत्व उसे स्वीकार है। इसको प्रमाणित करना ही हमारा जागृति का प्रमाण है। मानवीयता पूर्ण आचरण को जब मैं प्रमाणित किया तब हमें बोध हुआ कि मानवत्व ही हमारा स्वत्व है। वैभव है और उसकी खुशहाली निरंतर बहने लगी। मैं समझता हूँ कि पूरी मानव जाति भी मानवत्व के लिए तृषित है। मानवत्व मानव का स्वत्व है उसे छोड़कर कहीं भाग नहीं पायेगा आज नहीं तो कल उस जगह पर आना ही पड़ेगा।

मानव परंपरा के लिए हर मानव में इतनी बड़ी संपदा समाहित ही है, संभावना समाहित ही है। प्रमाण हर आदमी की इच्छा, आवश्यकता और उत्सव के आधार पर है। यदि एक व्यक्ति में ही यह गुण आता व्यवस्था का और अन्य व्यक्ति में यांत्रिकता की तरह चलता रहता तो सबमें सुखी होने की इच्छा आवश्यकता नहीं बनती।

कोई न कोई गद्दी पर बैठा रहा है उसे भी सुख, स्वराज्य और स्वतंत्रता नहीं मिला। गद्दी की ओर ताकने वालों को, देखने वालों को भी सुख स्वराज्य नहीं मिला। इस विधि से पता लगता है कि अभी तक हम सभी खाली हाथ हैं। इस रिक्तता को पाटने के लिए हर मानव में चेतना विकास पूर्वक मानवत्व सहित जीना ही विकल्प है। मानव जागृत होने के लिए मानवीय शिक्षा ही विकल्प है। इसका प्रयास हमने किया है,

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