एक आवश्यकता है। ऐसे अर्हता से सम्पन्न परिवार मानव और परिवार कम से कम 100 परिवार के सहअस्तित्व में परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था समझदारी पूर्वक प्रमाणित हो पाता है। ऐसी परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में ही आवर्तनशील अर्थशास्त्र चरितार्थ होना सहज संभव है।
आवर्तनशीलता का तात्पर्य जिस किसी बिन्दु से समृद्धि के अर्थ में प्राकृतिक ऐश्वर्य नैसर्गिकता सहज पूरकता क्रम में लक्ष्यपूर्ति तक और पुन: आरंभिक बिन्दु तक सूत्रित होने से है। यह चक्राकार रूप में चित्रित हो पाता है और प्रमाणित हो पाता है। उदाहरण के रूप में बीज से वृक्ष तक एवं वृक्ष से बीज तक क्रियाकलापों का अध्ययन स्वयं चक्राकार विधियों से ही दिखाई पड़ती है। वंशों के अनुरूप शरीर रचना एवं शरीर रचना के अनुरूप वंश परंपराएं चक्राकार विधि से इंगित होती है। जानने-मानने के आधार पर पहचानना निर्वाह करना एवं पहचानने निर्वाह करने के क्रियाकलापों को जानना-मानना चक्राकार विधि से देखा जाता है। संबंध सूत्रों के आधार पर मूल्य, मूल्य निर्वाह के आधार पर मूल्यांकन, मूल्यांकन के आधार पर संबंध सूत्र आवर्तन रूप में दिखाई पड़ता है। व्यक्ति का पूरकता परिवार में, परिवार का पूरकता व्यक्ति के लिए सूत्रित होना आवर्तनशीलता है। परिवार की पूरकता ग्राम में, ग्राम की पूरकता परिवार के लिए सूत्रित होना आवर्तनशीलता है। श्रम नियोजन पूर्वक उत्पादन, श्रम मूल्य के आधार पर उत्पादित वस्तु का मूल्य और मूल्यांकन, उत्पादित वस्तु का श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय आवर्तनशीलता के रूप में प्रमाणित होता है। पदार्थावस्था प्राणावस्था के लिए, प्राणावस्था जीवावस्था के लिए, पदार्थ, प्राण और जीव, ज्ञानावस्था के लिए तथा ज्ञानावस्था, पदार्थ, प्राण और जीवावस्था के लिए पूरक होना आवर्तनशीलता है। जीवन ज्ञान सहित सहअस्तित्ववादी विचार मानवीयतापूर्ण आचरण पूर्वक व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण मानव और मानव परंपरा में प्रमाणित करना अपेक्षित है।
व्यवस्था एवं व्यवस्था में भागीदारी क्रम में ही मानव को भौतिक समृद्धि, बौद्धिक समाधान सम्पन्न होता हुआ देखा गया है। हर परिवार जागृतिपूर्वक इस वैभव से सम्पन्न होना समीचीन है। यह जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन, मानवीयता पूर्ण आचरण सम्पन्नता का द्योतक और प्रमाण होना पाया जाता है।
जीवन प्रत्येक व्यक्ति में समान रूप से क्रियाशील रहना पाया जाता है। इसके लिए अध्ययन वस्तु करने वाला मानव है। मानव के अध्ययन क्रम में सर्वप्रथम हम कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता को देख पाते हैं। कल्पनाशीलता का उपयोग विविध विधि से होता हुआ कर्म स्वतंत्रता सहज कार्य-विन्यास गति में सर्वेक्षित होना पाया जाता है। इसके साथ परीक्षण-निरीक्षण एक आवश्यकता बनी रहती है। आबाल, वृद्ध, गरीब-अमीर, ज्ञानी-अज्ञानी, विद्वान और मूर्ख सभी व्यक्तियों में कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता संप्रेषित होता हुआ देखने को मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि सभी मानव में यह समान रूप से विद्यमान है। समानता