कर लेना मानव कुल में एक आवश्यकता है। यही मूलत: विनिमय के नाम से जाना जाता है। ऐसे विनिमय कार्य उत्पादन के लिए जो कुछ भी शक्तियों का नियोजन कर पाए वही वस्तुओं में उपयोगिता और कला मूल्य के रूप में पहचानने में आती है।
उपयोगिता और कला मूल्य का मूल्यांकन होना सहज है। इसी मूल्यांकन क्रिया को श्रम मूल्य का नाम दिया। उत्पादन क्रम में अनेक वस्तुएं होना पाया जाता है। यह महत्वाकांक्षा और सामान्य आकांक्षा के रूप में वर्गीकृत है। इनमें से सामान्य आकांक्षा संबंधी किसी वस्तु का उसमें भी किसी एक आहार वस्तु का मूल्यांकन सर्वप्रथम करना आवश्यक है। इस क्रिया को इस प्रकार किया जा सकता है कि जैसे गेहूँ को एक गाँव में कई परिस्थितियों में बोया जाता है। उत्पादन भी विभिन्न तादादों में होता है। उसका सामान्यीकरण उत्पादन तादातों के मध्य बिन्दु में सामान्य मूल्य रूप होना सहज है। जब एक वस्तु का उपयोगिता व कला मूल्य का मूल्यांकन हो जाता है, उसी प्रकार गाँव में उत्पादित हर वस्तु का मूल्यांकन हर स्वायत्त मानव से सम्पन्न होना स्वाभाविक है। ऐसे स्वायत्त मानव ही परिवार मानव और विश्व परिवार मानव तक अपने वर्चस्व को अथवा अपने वैभव को प्रमाणित करना संभव होने के कारण परिवार समूह, ग्राम परिवार तक एक गाँव में ही मूल्यांकन क्रिया का ध्रुवीकरण हो पाता है। फलस्वरूप ग्राम में उत्पादित वस्तुओं का विनिमय गाँव में होने में कोई अड़चन नहीं रह जाती है। परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था का प्रमाण कम से कम एक गाँव से ही होना संभव है। इसीलिए परिवार मूलक विधि से ही यह सफल होना एक निश्चित विधि है। परिवार सफलता के लिए अर्थात् परिवार स्वायत्तता के लिए स्वायत्त मानव का स्वरूप, उसकी सार्वभौमता अनिवार्य है। स्वायत्त मानव का स्वरूप प्रदान करने का प्रेरक तत्व ही मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार परंपरा है। मानवीयता पूर्ण शिक्षा-संस्कार परम्परा का मूल वस्तु अथवा सम्पूर्ण वस्तु जीवन-ज्ञान, अस्तित्व दर्शन और मानवीयतापूर्ण आचरण ही है। आज की स्थिति में भय और आस्था दोनों प्रलोभन के चक्कर में आकर अस्वीकृत होते जा रहे हैं। प्रलोभन की आपूर्ति का स्रोत और संभावना दोनों न होने के कारण, दूसरा उसकी तृप्ति बिन्दु न होने के कारण पागलपन छा जाना आवश्यंभावी रही है। अतएव इससे मुक्ति पाने के लिए कुछ लोग इच्छा रखते हैं। अधिकांश लोग निराशा, कुण्ठा ग्रसित हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में हर मोड़-मुद्दे में विकल्प की आवश्यकता है ही। यहाँ की प्रासंगिकता आवर्तनशील अर्थशास्त्र और कार्यक्रम से यह सारी परेशानियाँ दूर होकर स्वस्थ अर्थात् समाधानित, समृद्ध, अभय, सहअस्तित्वशील परिवार को साकार कर लेना संभव हो गया है।
परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था को कम से कम एक गाँव में प्रमाणित करना ही होगा। ग्राम परिवार का स्वरूप दस परिवार समूह सभा से निर्वाचित सदस्यों से सम्पन्न होना देख सकते हैं। ऐसा एक-एक परिवार