मिलता रहा। इस कार्य में जब मानव अपना परिश्रम, पुरुषार्थ को छुपाने लगा, इसके विपरीत आलस्य, प्रमाद और सुविधा, लिप्सा के साथ जुड़ गया या परिकल्पना किया तब रासायनिक (खनिज जन्य) उर्वरक, अर्थात् वनस्पतियों के लिए पुष्टिकारी द्रव्य का उपयोग शुरू किया। यह तो उपयोग करने वालो की विडम्बना रही। दूसरे भाग में जो इसका उत्पादन कार्य कर रहे हैं, उनकी प्रवृत्ति लाभ से ग्रसित रहना स्पष्ट दिखाई पड़ता है। लाभ मानसिकता पहले से ही परिभाषित है, कम देकर अधिक लेना। दूसरी ओर यांत्रिक विधि से जोतने-काटने-गहाने का कार्य संपन्न होने के कारण वश हल बैल की आवश्कताएं गौण होती गई। कम हो गई। यही मुख्य रूप में फल है अस्तित्व में पूरकता सहज उर्वरक कार्य और विधान के साथ भ्रम होना।
रासायनिक उर्वरक विधि से कृषि उत्पादन तादाद के साथ होना देखा गया। सामान्य मानव जो कृषक वर्ग में गिने जाते हैं, कृत्रिम उर्वरकता विधि से अनजान रहते हैं, ये सब उत्पादन के तादाद को देखकर कृत्रिम उर्वरक विधि को अपना लिए। इसीलिए यह रासायनिक खाद प्रचलित हुए। इसी के साथ-साथ कुछ ही वर्षों बाद यह भी भासने लगा कि रासायनिक खाद से धरती बरबाद हो जाएगी जैसे अम्लाधिक, क्षाराधिक व्याधि से धरती ग्रसित हो जाएगी। यहाँ तक यह ज्ञानार्जन तिथि तक वनस्पतिजन्य उर्वरक संग्रहण के लिए अनुकूल और प्रयोजनकारी पशुओं का क्षय हुआ रहना विवशता का आधार बनता गया यही प्रधान रूप में कृषि, धरती, कृषक, कृषि कार्यों के बीच में बनी हुई विसंगतियाँ है।
अनाजों की गुणवत्ता जो पुष्टि के रूप में पहचानी जाती है। ऐसे पुष्टि का प्रयोजन मानव और जीव शरीर के लिए पुष्टिदायी होने के रूप में देखा जाता है। यह सर्वविदित भी है। रासायनिक उर्वरकों से पुष्टि की मात्रा घटती गई तादात की मात्रा बढ़ती गई। जैसे शक्कर को आटे में मिला देने पर शक्कर की तादात उस मात्रा में नही रहता है जो मात्रा आटा सहित दिखती है। इसी प्रकार हर अनाज वस्तुओं में पुष्टि का जो सघनीकरण है वह इन कृत्रिम उर्वरक संयोग से विरल हो गई। यह तो एक भ्रमात्मक विपदा मानव जाति को जटिल अनुसंधान के उपहार के रूप में प्राप्त है और इसी के साथ और सर्वाधिक क्षतिकारी परिणाम कीटनाशक द्रव्यों से है। ये कीटनाशक शनै:-शनै: हर अनाज में स्थापित हो चुकी है। जड़ से जो द्रव्य मिलता है उसको जल संयोग से हर पौधा ग्रहण कर पाता है और पत्ते फूल में जो द्रव्य पहुँचती है उसे पत्तों के द्वारा विशेषकर हवा, अनुपातिक उष्मा के साथ-साथ ग्रहण कर लेता है। पत्ती तने में जो पुष्टि तत्व संग्रहित होता है, वही बीज के रूप में अनाज के रूप मिल पाता है। इस क्रम में अधिक तादाद रूपी अनाज में घुली हुई कीटनाशक जहरों की धारा जुड़ जाती है।
विज्ञान विशेषज्ञता से ग्रसित है। सम्पूर्णता के साथ कुछ जिम्मेदारियाँ अनदेखी अथवा नासमझी रह जाती है फलस्वरूप कीट मार कार्यक्रम कृषि का एक अंग होना पाया जाता है। वह सम्पूर्णता से जुड़ी हुई होती