- व्यापार विधि से कोई राष्ट्र राज्य व्यवस्था सार्वभौम, अखण्ड और अक्षुण्ण नहीं हो सकती।
- व्यापार विधि से कोई भी व्यक्ति समृद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि संग्रह सुविधा और लाभ का तृप्ति बिन्दु नहीं होता।
- व्यापार विधि से सार्वभौम शुभ (समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व)घटित नहीं हो सकता।
इन निष्कर्षों के साथ ही विकल्प की ओर दृष्टिपात करना एक आवश्यकता है।
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