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नहीं, साथ ही राज्य सामान्य रूप से मानव सहज वैभव को ध्वनित करता है, मानव को समझे बिना ही राज्य की स्थापना शासन के रूप में स्थापित हुई। मूलत: शासन का आरंभ घटना काल धर्म प्रधान रहा है राजा जिस धर्म का होता रहा, पूरे देश निवासी अर्थात् ऐसे धर्मावलम्बी सभी व्यक्ति होने के आधार पर धार्मिक राज्यनीति प्रभावशील रही। ऐसे विविध समुदाय भी राज्य और धर्म के आश्वासनों को स्थापित करने में सफल होते रहे हैं। धार्मिक मान्यताओं (आस्थाओं) में अंतर्विरोध होता आया फलस्वरूप धर्म का अथवा धर्मनीति का अथवा धर्म शासन का पकड़ ढीला होना शुरू हुआ। इसी बीच धातुयुग से समृद्ध होने के उपरान्त विस्फोटक तंत्र रूपी बारूद-बंदूक-तोप तक पहुँचे। इसी के साथ-साथ कबीला ग्राम युग तक सम्पन्न किए गए जीवों के उपयोग के साथ हाथी-घोड़ा का उपयोग हो चुकी थी, अब यह राज्य-राज्य के बीच युद्ध के लिए एक बहुत बड़ी संख्याओं में संग्रहित रहा। तलवार पहले से ही रही, तोप बंदूक और जुड़ गया। धातु युग के साथ-साथ बाण तंत्र भी प्रचलित हो चुकी थी। इस प्रकार युद्धतंत्र, उसकी गुणवत्ता विभीषिका की ओर बढ़ी और विभिन्न भौगोलिक आहार, आवास, अलंकार वस्तुएं प्रचुर होता आया। इस प्रकार संघर्षरत राज्य और धर्म अब राज्य प्रधानता को स्थापित करने के लिए कर विधियों से पूरा संग्रह कार्य में अग्रसर हुआ। असंतुलित संग्रह का स्वरूप अर्थात् सभी लोग ऐसा संग्रह नहीं कर सके, ऐसा संग्रह राजगद्दियों में अथवा कोषों में हुआ। लोकमानस में ऐसी घटना की सांत्वना को राजगद्दी और धर्मगद्दी दोनों मिलकर देश सुरक्षा को, धर्म की अखण्डता को और विस्तारवाद को ध्यानाकर्षण में लाते रहे, सांत्वना देते रहे।

उक्त स्वरूपों में अनुप्राणित राज्य, धर्म और जनता अथवा राज्यवासी समुदाय अपने-अपने कल्पनाशीलता-कर्मस्वतंत्रता को भी प्रयोग करते रहे। उक्त सभी प्रकार के उत्पादनों के क्रम में ग्रामोद्योग, कुटीर उद्योगों की स्थापना हुई। इसके आरंभिक काल में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रभावशील रही। राजगद्दी के कर विधि कार्यक्रम के साथ ही वस्तु विनिमय प्रणाली में भी लाभार्जन के लिए प्रवृत्त हुआ। यही लाभोन्माद का प्रारंभिक चरण माना जा सकता है। इसके उपरान्त विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार के वस्तु विनिमय के स्थान पर मुद्रा प्रचलन स्थापित हुई। आरंभिक समय में धातु मुद्रा का प्रचलन स्थापित होना इतिहास में भी अंकित है। धातुओं पर लिखे गये संख्यात्मक मूल्यों के आधार पर वस्तुओं का विनिमय आरंभ हुआ। यहाँ उल्लेखनीय घटना यही है ‘इसके पहले वस्तु विनिमय प्रणाली जब स्थापित हुई तब धातु मुद्रा चलन के साथ भी श्रम-मूल्य का मूल्यांकन, उसकी प्रणाली, पद्धति, नीति स्थापित नहीं हो पायी।’

उक्त परिस्थिति प्रणालियों से गुजरता हुआ राज्य और धर्मों के चलते, मानव का ही कर्मस्वतंत्रता-कल्पनाशीलता के चलते वैज्ञानिक युग इस धरती पर आरंभ होना पाया गया। यह स्थापित होने में जो कुछ

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