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और जीवन का संयुक्त रूप है। इस विधि से मानव की महिमा और जीवन की महिमा, सहअस्तित्व की महिमा अपने आप से स्पष्ट होता है। अस्तित्व सहज रूप में है सहअस्तित्व। सहअस्तित्व सहज है विकास। विकास सहज है जीवन। जीवन सहज है जागृति। इसके लिए सहअस्तित्व ही दृश्य एवं जीवन ही दृष्टा है। रासायनिक भौतिक रचना विरचनाएं एक दूसरे से अंतर्संबंधित क्रम है। ये सारी घटनाएं नित्य वर्तमान है। रासायनिक भौतिक विरचनाएं ना हो, ऐसा कोई क्षण आप नहीं पायेंगे। कोई दिन नहीं पायेंगे। कोई शताब्दी नहीं पायेंगे। इन सारी रचना-विरचनाओं का दृष्टा होता है जीवन। देखने-समझने वाला जीवन ही होता है शरीर कुछ भी नहीं समझता है।

शरीर के जिस भाग में जीवन की जीवन्तता नहीं रहती उसे शून्य कहते हैं। उस जगह में ठंडा-गरम कुछ भी लगाओ समझ में नहीं आता। दूसरा अस्पतालों में आपरेशन करते समय बेहोश करने के बाद कुछ भी काट-पीट की जाती है कोई पता नहीं रहता है। इन आधार पर समझ में आता है जहां पर जीवन जीवन्तता बनाए रखता है वहीं संवेदनाएं समझ में आती है। जीवन अपनी तृप्ति के लिए जहां जिज्ञासु होता है उसके लिए ही वह सत्यता, यथार्थता, वास्तविकता समझता है। फलस्वरूप जीवन सुखी होने का आधार बनता है। इस कारण से हमको जीवन को समझने की आवश्यकता हुई। ये आवश्यकता अमीर, गरीब, बली, निर्बल, बड़े, छोटे सबको ही है।

इसमें दूसरा सूत्र मिलता है जीवन-विद्या से कोई वर्ग-संघर्ष का आधार नहीं है। इसमें सर्वशुभ का आधार सहअस्तित्व ही है। सबके निरंतर सुखी होने का स्रोत है। समाधानित रहने का प्रमाण है। ये सब चीजें अपने आप से उद्गमित होते हैं। मैं समझता हूँ मानव इसी को चाहता है ऐसे ही जीना चाहता है। हम सबके साथ ही सुखपूर्वक जी सकते हैं। अकेले कोई होता नहीं ये सिद्धान्त निकलता है। इस धरती के संबंध को छोड़कर कोई मानव सुखी होने का प्रयत्न करें तो हो नहीं सकता। पानी से संबंध छोड़कर सुखी कोई हो नहीं सकता। किन्ही भी चीजों के संबंध को छोड़कर हम सुखी नहीं हो सकते तो जीवन संबंध को छोड़कर कैसे जियोगे। कैसे यांत्रिक हो जायेगा? और भावनात्मक संसार से कैसे मुक्ति पायेगा। आप ही सोचो ये कैसे हो सकता है। हम बाजार में जाते हैं, सब्जी, अनाज, सोना, लोहा सबका भाव पूछते हैं। उस भाव का दृष्टा कौन है? मानव ही होता है। जब सबका भाव है तो मानव का भी भाव होगा। मानव का भाव पता लगाना ही आवश्यकता रही है, उसको छोड़कर सबका भाव पकड़ लिया। जिनसे लाभ अवसर बना उन सभी भावों को पकड़ लिया जबकि मानव का भाव (मूल्य) समझ लें तो लाभ-हानि से मुक्त हो जायेंगे। मानव मूल्य समझने से, जीवन मूल्य समझने से, स्थापित मूल्य समझने से, शिष्ट मूल्य समझने से हमको लाभ-हानि की आवश्यकता शून्य हो जाती है। तब उपयोगिता मूल्य पर जीना होता ही है जिससे धरती की

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