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यह अस्तित्व सहज क्रिया है। चारों अवस्थाएं इस धरती पर नहीं होगा तो अन्य धरती पर होगा। अगर मानव इस धरती को मानव के न रहने लायक बनाने को ही विकास समझता है तो इससे अच्छा अक्ल का पत्थर क्या हो सकता है। अधिकतर लोग इस प्रकार के अड़चन पैदा करने वाले मनुष्य, देश, समुदाय को विकसित मानते हैं। इसमें भी सोचने का मुद्दा है। जहाँ हम पहुँचे हैं यह बात तो उजागर हो गयी कि अपने ही करतूतों से हम फंस चुके हैं। फंसने के बाद छूटने की आवश्यकता है। इसका प्रस्ताव आपके सम्मुख आ चुका है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। आपकी सौजन्यता इसका आधार है। मनुष्य स्वयंस्फूर्त विधि से शुभ, अशुभ प्रवृत्तियों में दौड़ता है। शुभ प्रवृत्ति की ओर रास्ता न होने से अशुभ प्रवृत्ति की ओर दौड़ता है। शुभ की ओर दौड़ने का प्रस्ताव है उसे जांचने की जरूरत है, रास्ता पहचानने की आवश्यकता है।

पहला - मानवीय चरित्र एक ही होता है चाहे आदमी कैसा भी हो। मानवीय चरित्र का स्वरूप - स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार के रूप में होता है।

दूसरा - मूल्य बहते हैं संबंधों की पहचान से। संबंधों की पहचान, मूल्यांकन, उभयतृप्ति मिलने पर मूल्यों का निर्वाह हुआ ऐसा हम समझा हूँ।

तीसरा - तीसरी विधि में हम नैतिक तभी होते हैं जब अपने तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग करते करते हैं, सुरक्षा करते हैं।

इस ढंग से नैतिक मानव, मूल्य मानव, चरित्र मानव यह तीनों मिलकर मानवीय आचरण बनता है। व्यवस्था में जीने के लिए यही तीनों आधार है। यही सूत्र है, परिवार में, समाज में, व्यवस्था में, व्यवसाय में, प्रकृति में सब जगह इस आचरण को व्याख्यायित करने पर, लागू करने पर मानवीय संविधान हमें करतलगत हुई। मानवीय आचरण ही है जो राष्ट्रीय चरित्र के रूप में वैभवित हो सकता है। विगत में धार्मिक राजनीति, आर्थिक राजनीति के बारे में हम सोच चुके हैं वह भी पराभवित हो चुकी। अपने को कहीं न कहीं विकल्प को खोजना ही पड़ेगा। इसका प्रस्ताव यही है कि राष्ट्रीय चरित्र का आधार बिन्दु मानवीयता पूर्ण आचरण ही होगा। इसको समझने में मनुष्य को किसी भी देश काल में कोई परेशानी नहीं होगी। मानवीयता पूर्ण आचरण सुख एक बार आस्वादन करने की जरूरत है। इस प्रकार मानवीयतापूर्ण आचरण, मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान की हम व्याख्या देते हैं, वही समाजशास्त्र के रूप में हमें प्राप्त हो जाता है। शिक्षा में मानवीयता पूर्ण समाज शास्त्र को लाने की जरूरत है। मानव कैसे समझदार होगा, मानवीयतापूर्ण मानव क्या वैभव है। मानवीयता पूर्ण मानव परिवार में, समाज में, व्यवस्था में कैसे जीता है यह पूरा समाजशास्त्र है इसको अलग से अध्ययन करने की जरूरत है। मनुष्य बहुत अच्छे ढंग से वर्तमान में विश्वास रखते हुए

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