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ग्रामवासियों के साथ बना ही रहा। अपनी-अपनी प्रजाति के समूहों को सुदृढ़ बनाने के क्रम में, सतत परिवर्तन होते ही रहा। हर परिवर्तन के साथ आवश्यकताओं का स्वरूप, तादात और गुणवत्ता अपने आप बदलती रही। यह दो विधाओं में अपने-आप स्पष्ट होते आई। पहला आहार, आवास, अलंकार विधा में परिवर्तन, दूसरा भय और द्वेष वश आक्रमण प्रतिरोध कार्यों के क्रम में घूंसा, झापड़, गला घोटने की क्रियाओं से चलकर पत्थर और डंडे से मारपीट करने की एक लहर रही। पत्थर और डंडे के मारपीट से धातुओं से बनी हुई औजारों का प्रयोग अपने आप में और एक कदम रहा। मारपीट में, आक्रमण और प्रतिरोध में एक और परिवर्तन का स्वरूप रहा। इस अवधि तक यह आक्रमण और प्रतिरोध का कार्यक्रम दो विधाओं में गुजरते रहे। पहली विधा क्रूर जन्तुओं के आक्रमण का प्रतिरोध और दूसरी भयभीत मानवों के ऊपर किए गये आक्रमण और उसका प्रतिरोध के इस अवधि तक औजारों को (अर्थात् मारपीट के लिए प्रयोग किए गये औजारों को) और आहार, आवास, अलंकार के लिए प्राप्त वस्तुओं का एक दूसरे के बीच स्वेच्छा पूर्वक आदान-प्रदान होते रहा। दूसरा, एक दूसरे की वस्तुओं को अथवा एक समुदाय की वस्तुओं को, दूसरा समुदाय आक्रमण पूर्वक छीना-झपटी करते रहा या छीना झपटी के लिए आक्रमण करते रहा। इसके विपरीत इसकी प्रतिरोध करने का कार्यक्रम अनवरत रहा ही। इस विधि से उक्त दोनों प्रयोजनों के लिए जो-जो वस्तुएं प्राप्त हुई उनकों आज की स्थिति में हम ‘अर्थ’ का नाम दे सकते हैं।

कबीला युग के साथ भी नस्ल रंग की विपदाएं बारंबार मंडराती ही रही। बार-बार आक्रमण और प्रतिरोध के लिए तैयारी, आहार-आवास-अलंकार, प्रजनन कार्य प्रणाली के लिए बारंबार परिवर्तन जैसा एकोदर संतानों में से ही परस्पर प्रजनन संबंध, दूसरा एकोदर न हो ऐसा प्रजनन संबंध, जिसे आज की भाषा में विवाह संबंध कहते हैं, स्वाभाविक रहे आया। ऐसे भय और द्वेष से त्रस्त कबीला और ग्राम समुदाय, राजा और गुरू के आश्वासनों पर राजगद्दी और धर्मगद्दी के लिए अर्पित हुए। राजा और गुरू की मान्यता क्रम से जो कुछ भी आहार, आवास, अलंकार के रूप में प्राप्तियाँ थी और शरीर और परिवार (पहचाना हुआ निश्चित संख्यात्मक मानव की सीमा) की सुरक्षा अर्थात् छीना-झपटी, आक्रमणों से मुक्ति दिलाने के आश्वासनों पर राजगद्दी में समर्पित हुए। सद्बुद्धि, सत्प्रवृत्तियाँ को सुलभ करने के आश्वासनों पर धर्मगद्दियों पर समर्पित हुए। इसी के साथ-साथ क्लेशों से मुक्ति पाने के आशय तत्कालीन सभी मानवों में समाया रहा। उसके सफलता के लिए आश्वासन घोषणा सबको अच्छा लगता रहा। इसी आधार पर राजगद्दी और धर्मगद्दी के प्रति आस्था निर्मित हुई। आस्था का तात्पर्य न जानते हुए भी किसी अस्तित्व को स्वीकारने से है। इस प्रकार आस्थावाद राजगद्दी, धर्मगद्दी की स्थापना, जनमानस में उसकी स्वीकृति रही। यहाँ उल्लेखनीय और स्मरणीय घटना यही है अर्थात् स्मरण में रखने योग्य घटना यह है कि धर्म को लोकमानस का न समझना रहा ही साथ ही धर्म को अपने स्वरूप में प्रमाणित करने योग्य धर्मगद्दी की स्थापना हुई

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