मध्यस्थ दर्शन के मूल तत्व
- उद् घोष
- जीने दो और जियो।
- मंगल-कामना
- भूमि: स्वर्गताम् यातु,
मानवो यातु देवताम्,
धर्मो सफलताम् यातु,
नित्यम् यातु शुभोदयम्॥
- भूमि स्वर्ग हो,
मानव देवता हों,
धर्म सफल हो,
नित्य मंगल हो॥
- अनुभव ज्ञान
- सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति, सत्ता (व्यापक) में सम्पृक्त जड़-चैतन्य इकाईयाँ अनन्त।
- व्यापक (पारगामी व पारदर्शी) सत्ता में सम्पृक्त सभी इकाईयाँ रूप, गुण, स्वभाव व धर्म सम्पन्न, त्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में है।
- सिद्धान्त
- श्रम-गति-परिणाम।
- उपदेश
- जाने हुए को मान लो।
माने हुए को जान लो।