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अध्याय – 2

उपासना – विवेक

ज्ञान :- अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान

विवेक :- जीवन के अमरत्व, शरीर के नशरत्व व्यवहार के नियम ही ज्ञान सहित, मानव लक्ष्य, जीवन लक्ष्य में प्रमाणित होना

मानव लक्ष्य :- समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण

जीवन लक्ष्य :- सुख, शांति, संतोष, आनंद

मानव जीवन में उपासना एक महत्वपूर्ण भाग है । उपासना ही मूल प्रवृत्तियों का परिमार्जन एवं परिवर्तन प्रक्रिया है । यही अध्ययन संस्कार एवं स्वभाव परिवर्तन भी है ।

उपायपूर्वक सहवास पाना ही उपासना सहज अवधारणा है जिसके लिये परिश्रम (परिमार्जित श्रम) एवं अभ्यास है । अभ्यास एवं परिश्रम से ही स्थूल, सूक्ष्म, कारण की सत्यवत्ता अध्ययन पूर्वक स्पष्ट है । जिससे तत्सम्बन्धी पदार्थ, नियति-क्रम, शक्ति, महिमा, विभूति एवं नियम संबंधी अनुसंधान, (अनुगमन पूर्वक अवधारणा) शोध प्रसिद्ध है । अनुसंधान, भौतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक भेद से है । अनुसंधान प्रक्रिया मनन, चिन्तन संकल्प एवं अनुभूति के रूप में प्रत्यक्ष है ।

स्थूल, सूक्ष्म, कारण (दृष्टा) का तात्पर्य देखने, समझने, प्रयोग करने, व्यवहार करने एवं अनुभव करने योग्य क्षमता के सम्पन्न होने से है ।

उपासनायें कूटस्थ, रूपस्थ एवं आत्मस्थ भेद से होती हैं । पूर्ण अनुभव के लिये की गई प्रक्रिया कूटस्थ उपासना है । महिमा सहित रूप सान्निध्य के लिए की गयी प्रक्रिया रूपस्थ उपासना है । प्रत्यावर्तन प्रक्रिया ही आत्मस्थ उपासना है जिसके लिये मानव बाध्य है । इसलिये प्रवृत्तियों का परिमार्जन ही मानव जीवन का कार्यक्रम है । मानव में पूर्णता एवं परिमार्जनशीलता की अपेक्षा प्रत्येक स्थिति में पाई जाती है । परिमार्जनशीलता ही निपुणता एवं कुशलता

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