कृतज्ञता
उन सभी सुपथ प्रदर्शकों के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ जिनसे आज भी यथार्थता के स्रोत जीवित हैं । कृतज्ञता जागृति की ओर प्रगति के लिये मौलिक मूल्य है। कृतज्ञता ही मूलत: संस्कृति व सभ्यता का आधारग्राही एवं संरक्षक मूल्य है।
जो कृतज्ञ नहीं है, वह मानव संस्कृति व सभ्यता का वाहक बनने का प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकता। जो मानव संस्कृति व सभ्यता का वहन नहीं करेगा, वह विधि एवं व्यवस्था का पालन नहीं कर सकता ।
संस्कृति, सभ्यता, विधि एवं व्यवस्था परस्पर पूरक हैं। इनके बिना अखण्ड समाज तथा सामाजिकता का निर्धारण संभव नहीं है। अस्तु, कृतज्ञता के बिना गौरव, गौरव के बिना सरलता, सरलता के बिना सहअस्तित्व, सहअस्तित्व के बिना कृतज्ञता की निरन्तरता नहीं है ।
जो मानव कृतज्ञता को वहन करता है, उसी का आचरण अग्रिम पीढ़ी के लिये शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायी है। यह मानवीयता में ही सफल है। जिस विधि से भी चेतना विकास मूल्य शिक्षा के लिए सहज सहायता मिला हो उन सभी के लिए कृतज्ञता है।
“ज्ञानात्मनोर्विजयते”
- ए. नागराज