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प्राक्कथन

यह कर्म दर्शन सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभूति और उसकी महिमा व गरिमा की अभिव्यक्ति है । अस्तित्व में सहअस्तित्व, सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास क्रम में विकास ही जीवन घटना एक यथार्थ स्थिति है । जीवन जागृति ही अनुभव योग्य क्षमता, योग्यता एवं पात्रता की अभिव्यक्ति, संप्रेषणा एवं प्रकाशन है । इसी क्रम में मानव अस्तित्व में अविभाज्य वर्तमान होना, अनुभूत होता है । अस्तित्व में अविभाज्य अंगभूत मानव में ही जीवन जागृति की अभिव्यक्ति होने की संभावना नित्य समीचीन है । प्रत्येक मानव में, से, के लिए अनुभव-क्षमता समान रूप से विद्यमान है, इसी सत्यतावश अनुभवाभिव्यक्ति की पुष्टि सार्वभौम रूप में होती है । अस्तु, कर्म दर्शन को अभिव्यक्त करते हुए प्रामाणिकता का अनुभव कर रहा हूँ । प्रामाणिकता ही आनंद और अनुभव सहज अभिव्यक्ति है ।

यही संप्रेषणा में समाधान, व्यवहार में न्याय और उसकी निरंतरता है । अनुभव जीवन में जागृति का द्योतक है । सम्पूर्ण क्रिया, चाहे वह जड़ हो अथवा चैतन्य हो, स्थिति में बल और गति में शक्ति के रूप में वर्तमान है क्योंकि स्थिति के बिना गति सिद्ध नहीं होती । इसी सत्यता के आधार पर, अनुभव ही स्थिति में आनन्द अर्थात् प्रामाणिकता, अभिव्यक्ति में ही अर्थात् गति में प्रमाण तथा समाधान है ।

अस्तु ! अध्ययनपूर्वक जीवन जागृति व अनुभव बल के अर्थ में यह अभिव्यक्ति सहज-सुलभ हुआ है । इसे मानव को अर्पित करते हुए परम प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ ।

- ए. नागराज

प्रणेता - मध्यस्थ दर्शन ‘सहअस्तित्ववाद’

अमरकंटक, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा,

श्री संवत 2061 तदनुसार

दिनांक : 6-4-2004

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