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समुदाय और विविधता यथावत् बना ही है। अन्तः कलह-बाह्य कलह भी वैसे हैं। इसलिये विज्ञान को अपनाने मात्र से परस्परता में अथवा अपने-अपने समुदाय में मतभेद और विरोधों का उन्मूलन नहीं हो पाया। यही हर समुदाय का अपर्याप्तता अर्थात् अपने में असंतुलित होने का द्योतक है। इसको परिवार में द्वेष, गाँवों में द्वेष, नगरों में द्वेष और गलती अपराधों शोषण के रूप में सामाजिक राजनैतिक, आर्थिक असंतुलन के रूप में दिखता है। हर समुदाय संतुलित रहना चाहता ही है। इसी आधार पर हर मानव संतुलित रहना चाहता है। संतुलन का मूल तत्व आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक विधा ही है। सामाजिकता राज्य समेत ही वैभवित होना पाया जाता है। राज्य का तात्पर्य ही वैभव है। समाज - वैभव का तात्पर्य पूर्णता के अर्थ में मानव अथवा सम्पूर्ण मानव उन्मुख होने से, प्रमाणित होने से हैं। इसीलिए समाज सहज अर्थ सार्थक होने के लिये हम समाज और समाजिकता का अध्ययन करेंगे।

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