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इस प्रस्तुति की वीडियो रिकार्डिंग की गयी तथा सब तक यह बात पहुँच सके इस क्रम में बाबाजी के उद्बोधन को ज्यों का त्यों पुस्तकाकार में छाप दिया जाए, ऐसा सभी मित्रों ने सोचा। इस प्रयोजन को ध्यान में रखकर बाबाजी का 'जीवन विद्या' पर उद्बोधन पुस्तकाकार रूप में प्रस्तुत है। आज इस पुस्तक को मानव जाति को सौंपते हुए हम सभी लोग अतीव प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। यह पुस्तक मानव को स्वयं के बारे में अस्तित्व के बारे में भ्रम को दूर करने में उपयोगी होगी – इसी आशा, विश्वास के साथ।

राजन शर्मा

नंदिनी नगर, (दुर्ग)

फागुन पूर्णिमा 2 मार्च, 1999

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