सहअस्तित्व में हैं। मानव कुल जागृत होने के उपरांत ही विधिवत व्यवस्था क्रम में अपने को प्रमाणित करना बन पाता है।
इस अध्याय में जितने भी विश्लेषण हुए वह सब मानव जागृति के अर्थ में ही केन्द्रित है। यह स्पष्ट रूप से सहअस्तित्व सहज सभी अवस्थाएँ एक दूसरे की पूरक होना आवर्तनशीलता है। हर अवस्थाओं में पूरकता व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाए रखने के अर्थ में ही हर पद परंपराएं निरन्तर वैभवित होना सहज है। इसी विधि में मानव भी एक परंपरा है। वह अपनी परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए स्वयं स्फूर्त व्यवस्था को अपनाना ही होगा। स्वयं स्फूर्त व्यवस्था का ही दूसरा नामकरण जागृत परंपरा है। जागृति हर मानव की वांछित अपेक्षा है। जागृति, पूरकता और सहअस्तित्व विधि से ही सम्पन्न हो पाता है।
इस धरती में सम्पूर्ण अवस्थाएँ अपने-अपने में और एक दूसरे के परस्परता में पूरकता विधि से पंरपरा सम्पन्न होना पाया जाता है। मूलत: परमाणु अंश एक दूसरे का पूरक होने के प्रमाण को निश्चित आचरण सम्पन्न परमाणु के रूप में स्पष्ट कर दिया है। पूरकता स्वयं आवर्तनशीलता का तात्पर्य है। यही परस्पर पुष्टि भी है। मूलत: परस्पर पुष्ट होना ही सम्पूर्ण अस्तित्व में और जागृति में समानता इंगित होता है। अस्तित्व में परस्पर पुष्टि का साक्ष्य परमाणु अंशों से आरंभ होकर परमाणु के रूप में व्यवस्था की पुष्टि हो गई। परस्पर परमाणुओं, अणु और अणुरचित रचनाओं के रूप में व्यवस्था को प्रकाशित कर दिया है। यह तथ्य सभी जागृत मानव को विदित होता है। जो जागृत नहीं है वे सब जागृत होने के लिए इच्छुक हैं। इस प्रकार सच्चाई के प्रति हर व्यक्ति जागृत होना चाहता है। सच्चाईयाँ सबको स्वीकृत रहता ही है। यही सच्चाई की महिमा भी है। सच्चाई अपने परम रूप में सहअस्तित्व ही है। अस्तित्व में व्यवस्था के रूप में एक दूसरे के पूरक रूप में आवर्तनशीलता प्रमाणित होती है। इसी क्रम में मानवेत्तर प्रकृति एक दूसरे के पूरक होना देखा जाता है। मानव के लिए मानवेत्तर प्रकृति पूरक होते हुए, मानव मानवेत्तर प्रकृति के साथ पूरक होने के लिए आवश्यकीय जागृति अभी भी प्रतीक्षित है। मानव अपने में व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में आवर्तनशील होना प्रमाणित होता है। यही इस आवर्तनशील अर्थशास्त्र को प्रणयन करने के क्रम में उद्देश्य है। यह उद्देश्य अस्तित्व सहज होने के कारण से सहज उद्देश्य भी कहा जा सकता है।
आवर्तनशील विधि से अंतर संगीत, बाह्य संगीत का अनुभव करना सहज है। दूसरे विधि से अन्तर समाधान-बाह्य समाधान का अनुभव किया जा सकता है। यह भी देखा गया है कि समाधान क्रम में ही सुखानुभव होना पाया जाता है। सुख का प्रमाण ही है वर्तमान में विश्वास। वर्तमान में विश्वास होने का मूल तत्व ही है वर्तमान में व्यवस्था। व्यवस्था का मूल स्वरूप ही है हर वस्तु को अथवा हर-एक को जीने देना और जीना