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अखण्ड समाज चाहिये या संकीर्ण समुदाय चाहिये - यह निर्णय हर समझदार करेगा - यह मेरा विश्वास है।

व्यवहारवादी समाजशास्त्र में इस लक्ष्य को बोध और हृदयंगम कराने की व्यवस्था है। मानवीय संविधान का धारक-वाहक मानव ही होना विश्लेषण पूर्वक स्पष्ट की गई है। इसका मूलरूप सर्वमानव मानवत्व सहित व्यवस्था होना एक निश्चित ध्रुव है, यह नियति क्रमानुषंगीय और जागृति क्रमानुषंगीय विधि के योगफल में निश्चयन हुआ है। दूसरा ध्रुव सहअस्तित्व रूपी नित्य प्रभावी ध्रुव, नित्य वर्तमान है ही। इन दोनों ध्रुवों अथवा सभी ध्रुवों का दृष्टा मानव ही होना प्रतिपादित है। मानव दृष्टा पद प्रतिष्ठा में सर्वाधिक प्रयोजनशील होना प्रतिपादित, सूत्रित और व्याख्यायित है। इसी आधार पर हर व्यक्ति को जागृतिपूर्वक अभिव्यक्त, संप्रेषित और प्रकाशित करना देखा गया, समझा गया और इस व्यवहारवादी समाजशास्त्र में संप्रेषित किया गया। अस्तु, हर मानव जागृतिपूर्वक ही मानवत्व सहित व्यवस्था रूपी आचार संहिता और संविधान का धारक-वाहक होना स्पष्ट किया गया है जिससे ही मानव प्रयोजन अक्षुण्ण विधि से सफल होना कारण, गुण, गणित रूपी मानव भाषा से समझा दी गई।

जागृत मानव परंपरा में स्वयंस्फूर्त विधि से ही मौलिक अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्रता और परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होना है जिसकी सार्वभौमता सहज होना समझा गया है। इसे मानवीय शिक्षा-संस्कारपूर्वक सर्वसुलभ करना लोकव्यापीकरण होने की विधियों को भी अध्ययन सुलभ किया गया है।

मानव में ही सार्वभौम संचेतना, संवेदनशीलता व संज्ञानीयता के संयुक्त रूप में प्रमाणित होना देखा गया है। संचेतना का स्वरूप को जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के रूप में अनुभव किया गया है। जानने, मानने की वस्तु के रूप में मूलतः सम्पूर्ण सहअस्तित्व ही है। मानव ही जागृतिपूर्वक अस्तित्व में दृष्टा पद का प्रयोग करने वाली इकाई है। इस तथ्य को भले प्रकार से हृदयंगम किया गया है। इसी तथ्य के आधार पर अस्तित्व में सहअस्तित्व, सहअस्तित्व में विकास, विकास क्रम में रासायनिक-भौतिक क्रियाकलाप फलस्वरूप पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीव शरीर और मानव शरीर की रचनाएं रचित-विरचित होने के तथ्यों को स्पष्ट किया गया है। साथ ही समृद्ध मेधसयुक्त जीव-शरीरों को जीवन ही संचालित करता हुआ वंशानुषंगीय क्रियाकलापों को सम्पादित करता हुआ होना, अध्ययन सुलभ हुआ और परमाणु विकास पूर्ण (गठनपूर्ण) होने के उपरान्त उसकी निरन्तरता के ध्रुव पर सहअस्तित्व में ही अर्थात् ऊपर कहे रासायनिक-भौतिक

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