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उम्मीद करते हैं। इतना ही नहीं धर्म गद्दियाँ पैसे की मानसिकता का पक्षधर हुई। ज्ञान पूर्वक पाप मुक्ति, स्वर्ग मुक्ति का आश्वासन मुद्रा के आधार पर विलास में खो गया है।

निष्कर्ष - सम्पूर्ण प्रकार के धर्मों का कार्यरूप रहस्यमूलक आश्वासन, उपदेश, रूढ़ी, मान्यता व प्रतीकों पर आधारित होना रहा। मानव सहज शुभकामना (सुख आश्वासनों के रूप में बताया जाता रहा है) की असफलता की पीड़ा, समाधान की आवश्यकता के रूप में बढ़ी। अर्थात् राज्य और धर्म का प्रभाव, सुख कामना का जनमानस में उदय होने में उपकार किया है। यह एक सकारात्मक पक्ष है। इसी दौरान किया गया मन भेद द्वेष, विद्रोह, द्रोह, युद्ध, शोषण, लूट, विध्वंस, घृणा, उपेक्षा, प्रायश्चित रूपी हिंसा ये नकारात्मक पक्ष है।

यही सुखापेक्षा आर्थिक राजनीति, संग्रह सुविधा के लिए प्रवृत्ति को दिशा दिया। इसके सहायक यांत्रिक बलों से धरती का शोषण, संग्रह-सुविधा के आधार पर मानव का भी शोषण देखने को मिला। यह सर्वविदित है। इस प्रवृत्ति और कार्यविधान के आधार पर धरती का शोषण, प्रदूषण, मिलावट, भ्रष्टाचार, कुकर्म (अर्थात् परधन, परनारी/परपुरूष, परपीड़ा कार्य) करने की प्रवृत्ति सामान्य जनता में भी पहुँची। युवा पीढ़ी में और बाल पीढ़ी में इन सभी कुकर्मों में दिलचस्पी पैदा हुई, स्थापित हुई। इसके लिए सटीक माध्यम सर्वविदित है जो नकारात्मक पक्ष है।

सकारात्मक पक्ष सम्पूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि जैसे दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन संबंधी वस्तुओं की उपलब्धि महत्वपूर्ण रही। फलस्वरूप आँख, कान, मुँह और पैर की दूरियाँ घट गई। उत्पादन कार्य में गति आई उसके अनुकूल तकनीकी विधाएँ विकसित हुई, यही सकारात्मक पक्ष है।

उपरोक्त विधि से सम्पूर्ण विश्लेषण और समीक्षाएँ घूम-घूमकर परिवर्तनों के साथ-साथ भय की पीड़ा यथावत् बना रहना ही पुनर्परिवर्तन, उसके योग्य समाजशास्त्र की आवश्यकता पर ध्यान दिलाता है। भय सदा-सदा ही प्रश्न चिन्ह का या समस्या का कारक तत्व होना पाया गया। मानव मूलतः समस्या और भय-प्रताड़ना से मुक्त होना चाहता ही है। इसी क्रम में आस्थावादी और वस्तुवादी प्रलोभन, दोनों में डूबकर देखा है। पुनः यही बारंबार दोहराता है। वस्तुवादी प्रलोभन से आस्थावादी प्रलोभन और आस्थावादी प्रलोभन से वस्तुवादी प्रलोभन तक ही सभी समुदायों की यात्रा सीमित रह गई है। अभी तक मानव कुल में प्राप्त दर्शन, विचार, ज्ञान की लम्बाई-चौड़ाई-गहराई इतनी ही है। इन्हीं आस्थाओं पर आधारित प्रलोभनों की श्रेष्ठता बताने वाले वर्ग अथवा इसे आजीविका के लिए उपयोग करने वाले समुदाय आस्थावादी प्रलोभनों का उपदेश देते व्रत, नियम, उपवास, अभ्यास, अर्चना, प्रार्थना, योग, जप, यज्ञ, तप आदि उपायों को सुझाते हैं।

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