1. शिक्षा 2. धर्म गद्दी 3. राज गद्दी 4. व्यापार गद्दी। यही परंपरा के कर्णधार हैं। नौका हैं। इसी में प्रकारान्तर से हर व्यक्ति सफर करता है। मैंने जो देखा है परंपराएं पूर्णतः झरझर हो चुकी है। इसलिए इसमें सफर करने वालों को ये कुछ दे नहीं सकती। परन्तु ये चारों परंपराएं इतना ढींग हांकते हैं कि हम सब कुछ आपको तारने के लिए ही शुरू किये हैं, लगाये हैं। किन्तु तरता हुआ एक आदमी भी नहीं दिखा। बल्कि जो तारने वाला है वह भी उसी में डूबा दिखाई देता है। इस आधार पर मैंने कहा कि परंपराएं सब सड़ चुकी हैं बेकार हो चुकी हैं। सार्थकता का स्रोत है तो मनुष्य। मैंने अध्ययन किया है हर मनुष्य कम से कम 51% से अधिक ही सार्थक है। मनुष्य सुधर सकता है। परंपरा सुधरने के स्थान पर दूसरी परंपरा ही स्थापित होगा। परंपरा सुधरने वाला नहीं, सुधरने की उसमें वस्तु नहीं है।
सार्थक शिक्षा हो, निरर्थक शिक्षा हो, सार्थक राज्य हो निरर्थक राज्य हो; शिक्षा की परंपरा, राज्य की परंपरा तो रहेगी ही। जैसे वर्तमान में राज्य का मूल तत्व है शासन जिसका आधार है संविधान; जिसका मूल है शक्ति केन्द्रित शासन। जिसका मतलब है गलती को गलती से रोको, युद्ध को युद्ध से रोको, अपराध को अपराध से रोको। इसमें आदमी को क्या होना है रोकने से क्या सुधरेगा। जितना रोकने गये उतना ही अपराध युद्ध बढ़ता गया ये तो सबके सामने हैं। व्यापार का व्यसन तो शोषण से छूटता ही नहीं। धर्म का व्यसन है सबको आश्वासन देना और सम्मान पाना। आश्वासन क्या देना पापी को तारूंगा स्वार्थी को परमार्थी, अज्ञानी को ज्ञानी बनायेंगे। इन आश्वासनों के पूरा होने का कोई प्रमाण तो मिला नहीं। मानव जाति आज तक सोचती रही मैं गलत हूँ परंपराएं सही है। यहाँ से मैं आदमी की आँख खोलना चाहता हूँ परंपराओं की आँखे नहीं। मैं परंपरा से लेन देन नहीं करता हूँ, मैं एक आदमी हूँ, आदमियों से संबंधित हूँ।
प्रश्न :- एक तरफ तो आप परंपराओं को सड़ा हुआ बताते हैं जबकि आदमी उसी परंपरा में पक कर आया है तो आदमी को भी उस परंपरा में पकने की वजह से सड़ा हुआ होना चाहिए। तब भी आप कहते हैं कि आदमी 51% से अधिक सार्थक है। आपके सार्थक होने का क्या तात्पर्य है।
उत्तर :- अभी चार परंपरा की बात कही गयी है उसमें बैठे लोगों में सुधार की जिज्ञासा नहीं है। गद्दी परस्तों को और गद्दी के दस्तावेजों में जिज्ञासा का आधार नहीं है। इस आधार पर वह सड़ चुका है। जबकि हर आदमी के किसी कोने में जिज्ञासा उदय रहता ही है इसी आधार पर मैं कहता हूँ कि आदमी 51% से अधिक ठीक है।