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प्रश्न :- आपने विकास की बातें कहीं है? अभी तक तो हम गाँव में सड़क बन जाना, बिजली लग जाना, आमदनी का बढ़ जाना को विकास कहते हैं। आपके विकास का क्या अर्थ है?

उत्तर :- चेतना विकास ही मानव में विकास है किन्तु अभी तक तो विकास सड़क बन जाना, इमारत बन जाना को कहते रहे हैं और तो और हर तहसील में जेल बन जाए इसको भी विकास कह रहे हैं। चमका हुआ मकान को विकास कहते हैं। इससे हमारा बहुत बड़ा विरोध नहीं है क्योंकि मनुष्य की सामान्य आकांक्षा महात्वाकांक्षा में जो साधन चाहिए उसके क्रम में ये समाहित होते ही हैं। किन्तु इसको उपयोग करने के क्रम में सामाजिक चेतना की आवश्यकता है। यांत्रिक चेतना में हम कहीं न कहीं गलती और अपराध में चले जायेंगे। मानव को कहीं न कहीं सामाजिक चेतना, व्यवहारिक चेतना, व्यवस्था की चेतना की आवश्यकता है, विकसित चेतना सहज समझ के क्रम में ही यह जीवन विद्या की बात रखी है। इसके बाद शिक्षा का मानवीयकरण एक प्रस्ताव है उसके पश्चात परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था एक प्रस्ताव है। इन तीनों प्रस्तावों के आधार पर एक नजर डालें तो हम जितना कम से कम धरती को घायल करेंगे उतना ज्यादा दिन हम टिकाऊ होते हैं। धरती को ही बर्बाद करके आदमी कहां रहेगा। इसलिए मनुष्य विकसित हो गया इसका आधार है, मनुष्य परिवार में समाधान और समृद्धि को प्रमाणित कर सके, हर मनुष्य को एक ही जाति का समझ सके, व्यवहार कर सके और मूल्यांकन कर सके अर्थात् सामाजिक हो। व्यवस्था का मतलब पाँचों आयाम में भागीदारी कर सके। इसी को हम मनुष्य का विकास या जागृति कहते हैं। सामाजिक व्यवस्था में व्यवहारिक कहते हैं। अभी तक हमारे विकास के मायने में सुख तो मिला नहीं। निरंतर सुख के लिए समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व चारों पूरा होना चाहिए। इसके बिना सुख मिलेगा नहीं।

प्रश्न :- डार्विन ने भी विकास का सिद्धान्त बताया था जो आज भी मान्य है। आपके विकास के सिद्धान्त और डार्विन के विकास में क्या अंतर है?

उत्तर :- डार्विन जो भी प्रस्तुत किया शरीर रचना के आधार पर विकास को प्रस्तुत किया। जैसे एक कीड़े की रचना, जोंक की रचना, घोड़े की रचना, गाय की रचना वैसे ही मनुष्य की रचना। इसमें आधार बनाया हड्डियों को। हड्डियां किस प्रकार कितना लंबा, कितना चौड़ा हुआ इसको विकास बताया उन्होंने। मनुष्य के शरीर को ध्रुव मान लिया। मनुष्य के शरीर रचना को आधार बनाया इसके पीछे के शरीर रचनाओं को जोड़ लिए और इसके बाद ये बना है, इसके बाद में ये बना ऐसा वो कहते हैं। डार्विन का शरीर रचना के अर्थ में जो कहना हैं इसमें थोड़ी तकलीफ है, लेकिन मानव के अर्थ में कहना पूरा तकलीफ है। डार्विन

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