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भौतिकवाद के अनुसार इकाईयाँ जहाँ रहती है वहाँ व्यापक सत्ता नहीं रहती अर्थात् इकाईयाँ व्यापक वस्तु को हटा देती है। अत: इकाईयाँ व्यापक वस्तु से बलवान (भारी) मानी गयी है। जबकि यथार्थ में देखा सारी वस्तुएँ शून्याकर्षण में है। धरती, सूरज, सौरमंडल, आकाशगंगाएं सभी शून्याकर्षण में है। शून्याकर्षण स्थिति में है- इससे यह स्पष्ट होता है कि सत्ता और इकाई की परस्परता में भार नहीं है। जबकि इकाईयों की परस्परता में ही भार स्पष्ट होता है। जैसा दो परमाणुओं की परस्परता में अणु बनने की प्रवृत्तिवश भार स्पष्ट होता है। इस प्रकार एक से अधिक अणु निश्चित रचना प्रकृतिवश भार स्पष्ट हो गया है। इकाईयों में एक दूसरे के परस्परता में भार को स्पष्ट करने के क्रम से जिसे हम आकर्षण बल कहते हैं ; वास्तविकता में वह विकासक्रम में भागीदार या समग्र व्यवस्था में भागीदारी के अर्थ में है। जैसे कोई पत्थर धरती के वातावरण में कुछ दूर से छोड़ने पर धरती पर ही आता है वह उस पत्थर में निहित विकासोन्मुखी प्रवृत्ति के आधार पर ही है। इस प्रवृत्ति को प्रकाशित करते समय इसे आकर्षण बल नाम दे दिये है। इन दो प्रमाणों से हमें समझ में आता है कि सभी क्रियाशील है। सत्ता पारगामी है इसका साक्ष्य है प्रत्येक इकाई क्रियाशील है, नियंत्रित है, बल संपन्न है। अस्तित्व में इकाई को कहीं भी स्थित होने पर नियंत्रण, क्रियाशीलता और बल सम्पन्नता यथावत बना ही रहता है यह भी सत्ता के पारगामी होने का साक्ष्य है।

प्रश्न :- सत्ता में अनंत इकाईयाँ डूबी, घिरी, भीगी है ऐसा आपने कहा। तो वे परस्परता में भी अनंत कोणों से प्रकाशित होती है इसको स्पष्ट कर दीजिए।

उत्तर :- इसमें एक सूत्र लिखा है प्रत्येक एक अपने में अनंत कोण सम्पन्न है। अनंत कोण किसी न किसी दिशा में सीधी रेखा में जाता है और उस सीधी रेखा में वो वस्तु प्रतिबिम्बित रहती ही है। कोण जो है कहीं न कहीं जा कर किसी वस्तु पर ही टिकता है। सामने एक वस्तु दिखते तक वो कोण जाता ही रहेगा। तो जहाँ वस्तु मिलता है उसी के ऊपर वस्तु प्रतिबिम्बित रहता है। इस ढंग से वस्तु प्रकाशमान है ये बात का प्रमाण होता है। वस्तु प्रकाशित है इस प्रमाण के साथ हर वस्तु में प्रकाश समाया हुआ है। इस ढंग से प्रत्येक एक में अनंत कोण समायी हुई स्पष्ट होती है वो प्रकाशमानता के अर्थ में ही है। आपका प्रतिबिंब मेरे ऊपर होने के फलस्वरूप आपका प्रकाशमानता हमको समझ में आती है।

प्रश्न :- आज दुनिया व्यापार में रोजगार में यहाँ तक की शिक्षा में भी लाभ कमाने की तरफ दौड़ रही है जिसको आपने लाभोन्माद कहा है। इससे विश्व में जो सामाजिक, आर्थिक, नैसर्गिक समस्यायें उत्पन्न हुई हैं इनका निदान कहां मिलेगा? यदि लाभ कमाने के चक्कर को दुनिया छोड़ना चाहे तो उसका विकल्प क्या होगा?

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