1.0×

के अनुसार बन्दर का क्रमश: रूपान्तरण होते हुए मानव शरीर बना और इसके बीच में भी कई जीव शरीर बने जो बाद में नष्ट हो गये। जबकि हमारे अनुसार किसी न किसी समृद्ध मेधस सम्पन्न जीव के गर्भाशय में, प्राणसूत्र में अनुसंधान का उद्देश्य ऐसे शरीर रचना की परंपरा को स्थापित करना रहा, जिसके माध्यम से जीवन अपनी जागृति को प्रमाणित कर सके। जबकि डार्विन के अनुसार नैसर्गिकता व वातावरण के दबाव में ये अनिश्चित शरीर रचनाएँ घटित हुई। जीवन ज्ञान डार्विन को था नहीं। जीवन को ध्रुव मानकर उन्होंने कुछ कहा नहीं। जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में ही मानव होता है। अभी भी विकास को खोजते हैं तो शरीर में, हड्डियों में खोजते हैं और उसके लिए नोबेल प्राइज होते हैं, डिग्रियाँ होती है, नौकरियां होती है उनके विकास का ध्रुव है मानव शरीर। तो उनके अनुसार शरीर को तैयार करके मानव बन जाना था वह हुआ नहीं। मानव, शरीर की हड्डियों के दायरे में व्याख्यायित होती नहीं। इसकी गवाही है डार्विन ने खुद ही लिखा है कि मैं स्वयं शरीर के हड्डियों के दायरे में व्याख्यायित नहीं होता हूँ। वह मानव को व्याख्यायित करने में असमर्थ था। रचना विधि में आप श्रेष्ठता को विकास कहते हैं। जबकि विकास का जो ध्रुव बिन्दु है वह जीवन है। जीवन के बिना शरीर कुछ काम नहीं कर सकता। शरीर को जीवित बनाये रखने वाला जीवन ही है। न केवल जीवन के आधार पर, न केवल शरीर के आधार पर, ‘मानव’ जीवन और शरीर के संयुक्त आधार पर है।

परमाणु में जो विकास है वह गठनपूर्णता के अर्थ में है। हरेक जड़ परमाणु गठनशील है। हर गठन में एक से अधिक अंश होता है। हर परमाणु में मध्यांश और उसके चारों ओर चक्कर लगाने वाले अंशों की आवश्यकता है। ऐसा अस्तित्व में स्वाभाविक रूप से होना पाया जाता है। ऐसे परमाणुओं में कम से कम दो से लेकर अनेक संख्या में अंश समाये रहते हैं। अनेक प्रजाति के परमाणु हैं, उसमें से एक प्रजाति का परमाणु हैं जीवन परमाणु। अंशों का घटना-बढ़ना जीवन परमाणु में होता नहीं है इसलिए अक्षय शक्ति, अक्षय बल संपन्न होता है इसे ही परमाणु में विकास कहते हैं। अतः जीवन परमाणु को विकसित कह रहे हैं और विकास के बाद जागृति होती है जागृति का प्रमाण है जानना-मानना, पहचानना, निर्वाह करना परमाणु अंशों में होता है। एक परमाणु अंश दूसरे परमाणु अंश को पहचानता है इसलिए निश्चित दूरी में रहकर व्यवस्था को समीकरण किये हैं। व्यवस्था के रूप में कार्य कर रहे हैं। यही भौतिक रासायनिक क्रियाकलाप के रूप में गण्य होता है। रासायनिक क्रियाकलाप की चर्मोत्कर्ष रचना इस धरती पर मानव के शरीर के रूप में प्रमाणित है। शरीर को जीवन मान लिया।

Page 78 of 95
74 75 76 77 78 79 80 81 82