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हम यह भी अनुभव कर चुके हैं कि हर समझदार मानव परिवार का समाधान समृद्धिपूर्वक जीना सुलभ होगा। मेरा यह भी विश्वास है कि हर मानव अर्थात् प्रत्येक नर-नारी समाधान, समृद्धि के प्यासे हैं। यह प्यास तृप्ति में परिवर्तित हो, यही इस अनुभव दर्शन का मूल उद्देश्य है।

इसका मानव में स्वीकृत होना, नियति विधि और नियति होने के आधार पर इसका लोकव्यापीकरण होना आवश्यक है। इसे स्वीकारने के उपरान्त ही, इसे प्रस्तुत किया।

मुझे पूरा भरोसा है कि मानव कुल में आदि काल से बनी हुई अभ्युदय की अपेक्षा प्रयासों के क्रम में यह ग्रन्थ सार्थकता की मंजिल तक पहुँचाने में उपयोगी होगा।

जय हो ! मंगल हो ! कल्याण हो !

- ए. नागराज

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