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दूसरे विधा से मानव सहज कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता के आधार पर विचारों का उन्नयन हुआ, जिसको हम भौतिकवादी विचार कह रहे हैं। सम्पूर्ण कल्याण का आधार सुख-सुविधा और स्वर्ग का स्वरूप भौतिक वस्तु ही होना बताया गया। इसे अधिकांश लोकमानस में स्वीकारा भी गया। इस प्रकार अदृश्य के प्रति आस्थान्वित होना, दूसरे विधि से जो दृश्यमान वस्तुएँ है उसी को सम्पूर्ण सुख-सुविधा का आधार या विकास का आधार मान लेना देखा गया। भौतिकवाद भय और प्रलोभन के बीच झूलता हुआ संघर्षशील, संघर्षमय मानसिकता को तैयार करता हुआ देखा गया। भौतिकवाद का सार बात समीक्षा के रूप में यही मिलता है कि संघर्ष के लिए तैयार रहना परमाणु, अणु और अणु रचित पिण्डों का कार्यकलाप है। उसी क्रम में मानव भी एक रासायनिक-भौतिक वस्तुओं से रचित पिण्ड है। इनको सर्वाधिक संघर्ष करने का हक है। इसका प्रयोग करना ही प्रगति और विकास बताया गया है। यह भय, प्रलोभन निग्रह बिन्दुओं में फँसा हुआ आस्थाओं से टूटकर स्वर्ग में मिलने वाला सभी चीजें यहीं मिलने का संभावना बना। उसके लिए आवश्यकीय संघर्ष को जैसा-जैसा भौतिकवादी शिक्षा में शिक्षित हुए वैसे-वैसे अनेक तरीकों सहित संघर्ष करने के लिए प्रवृत्तियाँ बुलंद होते ही आया, अर्थात् बढ़ता ही आया। जबकि हर मानव भय और प्रलोभन रूपी भ्रमवश ही संघर्ष करता है। आदि काल से कबीला युग तक भी भय और प्रलोभन रहा।

प्राकृतिक प्रताड़ना से भयभीत रहा हुआ मानव जाति को राजा और गुरु ने मिलकर स्वर्ग और मोक्ष का, जान-माल की सुरक्षा का आश्वासन देते रहे। कबीला युग तक में संघर्षशीलता हाथ, पैर, नख, घूंसा, पत्थर, डंडा, तलवार तक पहुँच चुके थे। जैसे ही राजदरबार आया, समर शक्ति संचय विद्या में समुन्नत क्रिया के नाम से जो कुछ भी किया वह सब बन्दूक, बारूद, हथगोला, गुलेल प्रणाली, धनुष प्रणाली के साथ-साथ राडर प्रणाली जुड़कर वध, विध्वंसात्मक जैविक रासायनिक अणुबमों को दूर मार, मध्यम मार, निकट मार विधियों को विधिवत तकनीकी पूर्वक हासिल किया। इसमें भय स्वाभाविक रूप में बरकरार रहना पाया गया। प्रलोभन, छीना-झपटी, वंचना-प्रवंचना, द्रोह-विद्रोह पूर्वक और छल-कपट-दंभ-पाखंड पूर्वक परस्पर शोषण चरमोत्कर्ष रूप धारण किया। प्रलोभन के रूप में संग्रह-सुविधा उद्वेलित करता ही आया। इसका तात्पर्य यह हुआ आदिकाल में जो भय और प्रलोभन रहा है, उसे नर्क के प्रति भय और स्वर्ग के प्रति प्रलोभन के रूप में आदर्शवाद ने स्थापित किया, भौतिकवाद से सुविधा, संग्रह, भोग, अतिभोग में प्रलोभन, दूसरे का अपहरण, छीना-झपटी, लूट-खसोट करते समय सामने वाला कुछ कर जायेगा, इस भय के मारे दमनशील उपायों को अपनाने के आधार पर संघर्ष मानसिकताएँ सज गया। इसी में सर्वाधिक व्यक्तियों का मन प्रवृत्त रहना पाया जाता है। इसका पहला साक्ष्य संग्रह, द्वितीय साक्ष्य दमनकारी उपायों के प्रति पारंगत रहना ही है। ऐसे दमनकारी उपायों से लैस रहने के लिए व्यक्ति, परिवार और हर समुदाय अधिकाधिक सुसज्जित होने के लिए यत्न, प्रयत्न, कर्माभ्यास, युद्धाभ्यास करता हुआ समूची धरती में दिखाई

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