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अध्याय - 4

आत्मा जीवन में अविभाज्य है

‘जीवन’ का स्वरूप विकासपूर्णता के फलन में चैतन्य पद प्रतिष्ठा सहज एक परमाणु है जो भारबन्धन और अणुबन्धन से मुक्त है। यही ‘जीवन’ के नाम से सम्बोधित है। भ्रम बन्धन से मुक्त होना मोक्ष है यही जागृति सहज प्रमाण है।

जीवन में मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि और आत्मा अविभाज्य रूप में क्रियाशील है। ये सब निश्चित क्रियाओं के नाम है। ‘वस्तु’ के रूप में मध्यांश सहित चार परिवेशों के रूप में क्रियाशील इकाई है। इस प्रकार ‘जीवन’ अपने में चैतन्य पद प्रतिष्ठा सहित मानव परंपरा में समझदारी सहित परावर्तन-प्रत्यावर्तन पूर्वक जीवन सहज क्रियाओं को प्रकाशित करता ही रहता है। यही जागृति है।

व्यवस्था की मूल वस्तु अस्तित्व में केवल परमाणु ही होना पाया गया है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति ही जड़-चैतन्य के रूप में वैभवित हैं। इनमें से जड़ प्रकृति भारबन्धन और अणुबन्धन के फलस्वरूप भौतिक-रासायनिक रचनाओं में भागीदारी करता हुआ देखने को मिलता है। यही प्रत्येक जड़ परमाणु अपने में व्यवस्था और रचना सहज समग्र व्यवस्था में भागीदारी का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। जबकि चैतन्य इकाईयाँ भारबन्धन और अणुबन्धन से मुक्त, आशा बन्धन से युक्त, ‘आशानुरूप कार्य गति पथ’ सहित मनोवेग के अनुपात में गतिशील रहना पाया जाता है। ‘जीवन’ अपने में गठनपूर्णता के उपरान्त अक्षय शक्ति, अक्षय बल सम्पन्न होना देखा गया है। यह ‘परिणाम के अमरत्व’ प्रतिष्ठा का फलन ही है।

आशा बन्धन से ‘जीवनी क्रम’ परंपरा को आरंभ किया हुआ जीवन, आशा से विचार, विचार से इच्छा बन्धन तक भ्रमित विधि से मानव कार्यकलापों को प्रस्तुत करता है। इच्छाएँ चित्रण कार्य को, विचार विश्लेषण कार्य को और आशा चयन क्रिया को सम्पादित करता हुआ मानव परंपरा में भय, प्रलोभन और आस्था में जीता रहता है। प्रिय, हित, लाभ संबंधी संग्रह-सुविधा-भोग द्वारा प्रलोभन के अर्थ को; युद्ध, शोषण, द्रोह-विद्रोह-संघर्ष ये सब भय को और भक्ति-विरक्ति पूर्वक आस्था त्याग-वैराग्य को मानव ने प्रकाशित किया है। यह परंपरा सहज विधि से ही होना पाया जाता है। परंपरा में इसी के लिये शिक्षा-संस्कार, उपदेश, शासन-पद्धति, संविधान भी स्थापित रही है। इसी क्रम में सामान्य आकांक्षा और महत्वाकांक्षा संबंधी और सामरिक सामग्रियों के रूप में अनेकानेक चित्रण कार्य सम्पन्न हुआ। ऐसे कुछ यंत्र संचार के लिये मार्ग

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