भूमिका
इस अनुभवात्मक अध्यात्मवादी प्रबंध को मानव के कर कमलों में अर्पित करते हुए परम प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।
अनुभवात्मक अध्यात्मवाद अपने में अनुभवमूलक विधि से जीता जागता हुआ मानव की आपसी चर्चा है या दूसरी भाषा में अनुभवमूलक विधि से जीता जागता विवेक और विज्ञान की परामर्शात्मक प्रस्तुति है।
सौभाग्य यह रहा कि सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभव करने और उसकी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करने की सुखद घटना मेरे इस शरीर यात्रा में घटित हुई। यह मेरे ही स्वयं-स्फूर्त जिज्ञासा की परिणिति रही। नियति के अनुसार, अनुभव को व्यक्त करने का स्वरूप, प्रक्रिया, लक्ष्य और दिशा मुझे स्पष्ट हुई, जिसके आधार पर इस कृति की रचना संभव हो पाई।
जितनी भी सुनी हुई बातें हैं, उसके सार संक्षेप में, मेरे स्वयं को प्रमाणित होना ही, मेरा उद्देश्य बना रहा। इसी मानसिकता की गति जिज्ञासा में, जिज्ञासा शोध में, शोध अनुसंधान में प्रवर्तित होने के फलस्वरूप, नियति के अनुरूप होना संभव हो गया। अनुभवात्मक अध्यात्मवाद पूरा प्रबंधन रूप में साकार हुआ।
इस अभिव्यक्ति की संप्रेषणा में यही आशय निहित है कि अपने में अनुभव को भाषा रूप देना बन गया है। उसी प्रकार इसे अध्ययन करने वाले हर व्यक्ति में, भाषा को अर्थ रूप में स्वीकारने की महिमा समाई हुई है। इसी विश्वास से इसको मानव में, से, के लिए अर्पित करना संभव हुआ।
यह मैं अथ से इति तक अनुभव किया हूँ कि अनुभवमूलक विधि से किया गया सूझ-बूझ अर्थात् लक्ष्य और दिशा के अनुसार योजना और कार्य योजना तथा फल परिणाम - ऐसे फल परिणाम का अनुभव के अर्थ में सार्थक होना ही सर्वमानव सौभाग्य का स्वरूप होना पहचाना गया। इसी कारणवश इसे मानवता के लिए अर्पित किया गया है। इसी से अर्थात् अनुभवमूलक प्रणाली से न्यायपूर्वक जीना, समाधानपूर्वक जीना, व्यवस्था में जीना, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना, यह सभी संभव हो चुका है।
समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने का तात्पर्य - मानवीय शिक्षा कार्य में, न्याय सुरक्षा कार्य में, परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य में, लाभ-हानि मुक्त विनिमय कार्य में, स्वास्थ्य-संयम कार्य में भागीदारी करने से है।