स्फूर्त आदतों के आधार पर सुखी होने की आशा से है और प्रयास से है। इच्छा का तात्पर्य समझदारी सहित निष्ठा को प्रमाणित करने की चित्रणो से है। इस प्रकार हर मानव में शुभेच्छा सतत् उद्गमशील है ही। शुभेच्छाओं को शुभ के रूप में प्रमाणित करने की स्थली तक की, जागृति की, बनाम अनुभव की अपेक्षा और अनुभवशीलता बना ही रहता है। ऐसे अनुभव परंपरा में स्थापित होने की अपेक्षा और अनुभवशीलता बना ही रहता है। ऐसे अनुभव परंपरा में स्थापित होने के उपरान्त सदा-सदा के लिये मानव परंपरा अनुभवमूलक प्रणाली से सर्वशुभ को प्रमाणित करता ही है। अनुभवमूलक प्रणाली-पद्धति स्वस्थ-सुन्दर समाधान पूर्ण नीतिपूर्वक यह देखा गया है कि –
(1) समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व, यह सर्वशुभ है। यह सर्वमानव में, से, के लिये नित्य अपेक्षा है। इसके लिये मानव प्रयोग, अनुसंधान, शोध में कार्यरत रहा आया।
(2) जीवन सहज शुभ सुख, शांति, संतोष, आनन्द है। ऐसे मानव सहज शुभ गति मानवीयता पूर्ण आचरण है। प्रत्येक व्यक्ति में शुभ, सुन्दर, समाधान रूप ही ‘स्वायत्त मानव’ है। समग्र परिवार शुभ ही चाहते हैं जो पुन: समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है। यही अखण्ड समाज का सूत्र और व्याख्या है। यह अनुभवमूलक विधि से ही प्रमाणित होता है। अस्तित्व सहज सहअस्तित्व ‘त्व’ सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी क्रम में परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था ही है। सहअस्तित्व, वर्तमान में विश्वास, समाधान, समृद्धि यह अनुभव का ही स्वरूप है। अनुभव करने योग्य वस्तु जीवन है।
मानव ही दृष्टा पद में होने के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है मानव ही हर आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य और सर्वदेश-काल में अस्तित्व सहज सहअस्तित्व में, सहअस्तित्व सहज संबंधों में, संबंध सहज मूल्यों में, मूल्य सहज अनुभवों में बनाम, मूल्यांकन में ओतप्रोत रहने का नित्य अवसर सर्व समीचीन है। यहाँ इस तथ्य को इंगित कराने का उद्देश्य यही है सर्वमानव अनुभवमूलक विधि से ही नियम-न्याय-समाधान सत्य में, से, के लिये प्रमाणित होना देखा गया। यह सर्वमानव में स्वीकृत है। इसी आधार पर अनुभवात्मक अध्यात्मवाद को प्रकाशित, संप्रेषित, अभिव्यक्त करने में पारंगत होने के आधार पर संप्रेषित की गई। इससे मानव में, से, के लिये अनुभवमूलक विधि से जीने की विधि को विज्ञान और विवेक सम्मत विधि से अध्ययन पूर्वक सम्पन्न करना सहज रहेगा। यही इस प्रस्तुति की शुभकामना है।
अनुभव ही हर मानव का ठोस प्रमाण है। व्यवहार में, प्रयोग में भी, मानव का अनुभव ही संप्रेषणा का आधार है न कि यंत्र या वाङ्गमय। अनुभवमूलक विधि में महिमा यही है हर मुद्दा वस्तु के रूप में सत्यापित होने और प्रबोधन, अध्यापनपूर्वक बोध सुलभ करने और व्यवहार में, प्रयोग में पारंगत होने की स्थिति स्वयं-स्फूर्त होती है। इसी क्रम में मानव, मानवीयता पूर्वक जीने की कला, विचार शैली और अनुभव बल को