संस्कारों के रूप में स्थापित करते ही रहना और सम्पूर्ण संस्कार और समझ अनुभवमूलक क्रम में जानने-मानने की तृप्ति बिन्दु को प्रमाणित करने में अभिव्यक्त होना सहज है। इसी विधि से प्रमाण परम अनुभव का धारक-वाहक होने हर मानव आतुर-कातुर और व्याकुल है। वह सार्थक होना सहज है।
मानव परंपरा तब तक भ्रमित रहना भावी है जब तक समुदाय और समुदायगत आवश्यकता की हठधर्मिता, सुविधा संग्रह की हठधर्मिता, भोग-अतिभोगवादी हठधर्मिता, आदमी को मूलत: दुखी मानने वाली हठधर्मिता, स्वार्थी, अज्ञानी और पापी मानने वाली हठधर्मिता, कोई एक समुदाय अपने को धर्मी अन्य को विधर्मी मानने की हठधर्मिता, द्रोह-विद्रोह-शोषण और युद्ध को एक आवश्यकता मानने वाली हठधर्मिता, व्यक्तिवादी (अहमतावादी) मानसिकता के लिये सभी हठधर्मिता रहेगी। इसका निराकरण जागृति ही है। जागृति पूर्ण परंपरा मे ही अर्थात् जागृत शिक्षा-संस्कार, जागृत न्याय व्यवस्था और जागृत उत्पादन-कार्य व्यवस्था, जागृत लाभ-हानि मुक्त विनिमय व्यवस्था और जागृत स्वास्थ्य संयम पीढ़ी से पीढ़ी को सुलभ होने से है। ऐसी जागृत पूर्ण परंपरा में पीढ़ी से पीढ़ी जागृत होते ही रहना एक अक्षुण्ण परंपरा है। ऐसी परंपरा में अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सर्वसुलभ होने की कार्यप्रणाली, पद्धति, नीति क्रियाशील रहेगी फलत: विविध प्रकार से समुदायों को अपनाया हुआ भ्रम अपने आप विलय होना स्वाभाविक है। यह अनुभवमूलक जीने के क्रम में पाया जाने वाला वैभव है।
उक्त उदाहरण के क्रम में ही जागृत परंपरा में प्रवाहित मानव परंपरा के महिमावश सम्पूर्ण हठधर्मिताएँ विलय हो जाते हैं। जैसे-सही गणितीय ज्ञान के उपरान्त गणित में होने वाली कोई गलतियां शेष नहीं रहती हैं, इसी प्रकार जागृति सहज रूप में जीने के क्रम में सम्पूर्ण भ्रम विलय होता है। जैसा-संग्रह सुविधा रूपी हठधर्मिता और विवशताएँ समृद्धि पूर्ण होने के साथ-साथ विलय होना देखा गया है। भोग-अतिभोगवादी प्रवृत्ति और विषमताएँ तन, मन, धन रूपी अर्थ का उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन और प्रयोजनशील बनाने के प्रमाणों के साथ ही भ्रम विलय हो जाते हैं। धर्म गद्दी, राज गद्दी, व्यापार गद्दी और शिक्षा गद्दी जो अपने हठधर्मितावश मानव को पापी-अज्ञानी-मूर्ख, पिछड़ा, दलित दुखी रहना मानते हुए अपने अहमता, अहंकार को बढ़ाये रहते हैं। जागृत परंपरा सहज विधि से स्वायत्तता का प्रमाण, परिवार मानव सहज प्रमाण और परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था प्रमाण समाधान समृद्धि सहित प्रमाण के साथ ही ये सब हठधर्मिताएँ विलय हो जाते हैं। साथ ही इस जागृति का प्रमाण में अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था प्रमाणित होना स्वाभाविक होने के कारण सभी समुदायवादी एवं व्यक्तिवादी अस्मितायें अपने आप विलय को प्राप्त करेगें। भ्रमवश ही मानव परंपरा में विभिन्न समुदाय और उसकी अस्मितावश द्रोह-विद्रोह-शोषण और युद्ध को एक आवश्यकता मानते हुए छल, कपट, दंभ और पाखण्ड का वशीभूत हो गया है, ये सब तभी विलय हो जाते