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अनुभव और प्रामाणिकता का वैभव न्याय, धर्म और सत्य सहज प्रमाण सहअस्तित्व में नित्य वर्तमान रूप में समझने और समझाने की क्रियाकलाप, परस्परता में संप्रेषणा और अभिव्यक्ति-प्रकाशन होना पाया जाता है। जैसे एक उदाहरण के रूप में मुझसे कोई पूछता है - क्या मानव के बारे में विश्वास का परिशीलन करना आवश्यक है? इसको प्रमाणित करना भी आवश्यक है? इसके उत्तर में मैं कहता हूँ - हाँ आवश्यक है। फिर मुझसे पूछा जाता है आप कैसे विश्वास करते हो? इसके लिए मैं समझता हूँ कि

  • मानव का रूप एक शरीर रचना है।
  • मानव में कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता वर्तमान है।

कल्पनाओं के बारे में पहले स्पष्ट किया जा चुका है। आशा, विचार, इच्छाओं के अनुरूप कल्पना किया जाता है। वह चयन, आस्वादन, विश्लेषण, तुलन और चित्रण, इन साढ़े चार क्रियाओं में अर्थात् भ्रमित कल्पनाशीलता की सीमा में बारंबार परिशीलन करने योग्य जागृति सहज पाँचों क्रियाओं में से न्याय परिशीलन क्रम में विश्वास साम्य मूल्य के रूप में होना देखा गया है। पर्यावरण में विश्वास वश ही सांस लेता है, धरती पर विश्वास पूर्वक चलता है और पानी पीता है। वन, खनिज इन सबके स्वभाव के आधार पर निरंतर विश्वास करना पाया जाता है। दूसरी स्थिति में विश्वास पूर्वक ही इन सबके साथ कार्य, व्यवहार, विचार हम सब करते ही हैं। मानव के साथ मानव का विश्वास विधि भी मानवीय स्वभाव के आधार पर ही हम करते हैं। मानवीय स्वभावों में से विश्वास न्याय के अर्थ में परिशीलन हो जाता है। यही विश्वास जैसी वस्तु आँखों में आती नहीं, हाथों से छुआ नहीं जाता परन्तु समझ में आता है। सम्पूर्ण समझ चिंतन, बोध, संकल्प, अनुभव और प्रामाणिकता के रूप में वैभवित रहता ही है। इसमें से चिंतन, बोध, अनुभव जीवनगत गरिमा है और स्थिति है। प्रामाणिकता ऋतम्भरा ये महिमा है गति है। इस विधि से हमें स्वयं के प्रति निष्कर्ष यही समझदारी अर्थात् जानना-मानना-पहचानना-निर्वाह करने में पूर्ण जागृति ही हमारे तृप्ति का नित्य स्रोत है। निर्वाह करना ही अर्थात् समझा हुआ के अनुरूप निर्वाह करना ही ईमानदारी का परिभाषा है। समझे बिना जो कुछ निर्वाह किया जाता है भ्रम सिद्ध हो जाता है।

जानने-मानने में सम्पूर्ण मूल्य समझ में आता है। इसके तृप्ति बिन्दु में इसकी पूर्णता की स्वीकृति होती ही है। इसी अधिकारपूर्वक अर्थात् अनुभवपूर्वक अभ्युदय के अर्थ में व्यक्त होना प्रमाणित होता है। सम्पूर्ण मूल्यों का स्वरूप जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य और वस्तु मूल्यों के रूप में गण्य होता है। सुख, शांति, संतोष, आनन्द के रूप में जीवन मूल्य समझ में आता है। यह तभी प्रमाणित हो पाता है जब मानव ऊपर कहे गये दसों क्रिया रूपी जीवन को समझ लेता है। सुख का स्वरूप तुलन और विश्लेषण के साथ आस्वादन और चयन संतुलित होने की स्थिति में जागृति होने में आता है। इसे प्रत्येक

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