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और तीसरे प्रकार के आचरण सम्पन्न होकर प्रकाशित रहते हैं। इस घटना का सटीक अध्ययन करने पर आवर्तनशीलता, उदात्तीकरण, पूरकता, सहअस्तित्व के अर्थ में स्पष्ट हो जाता है।

सत्ता में संपृक्त प्रकृति ऊर्जा सम्पन्न बल सम्पन्नता क्रम में क्रिया के रूप में व्याख्यायित है। क्रिया श्रम-गति-परिणाम का संयुक्त रूप ही है। इसलिए मानव अध्ययन कर सकता है। सत्ता स्थितिपूर्णता के रूप में अर्थात् सर्वदा व्यापक, पारदर्शी, पारगामी के रूप में ही विद्यमान है। इसलिए इसे स्थितिपूर्ण नाम है। ऐसी स्थितिपूर्ण सत्ता में अनंत इकाईयों के रूप में अथवा अनगिनत एक-एक के रूप में स्थितिशील प्रकृति सहज जड़-चैतन्य रहना दृष्टव्य है। यही अस्तित्व स्वयं सहअस्तित्व होने का प्रमाण है। पूर्ण में संपृक्त प्रकृति, पूर्णता में गर्भित होना (पूर्णता का आशय सम्पन्न रहना) इस प्रकार से देखा जा सकता है कि प्रत्येक परमाणु अंश एक-दूसरे को पहचानते हैं। इसका प्रमाण निश्चित अच्छी दूरी में है। इतना ही नहीं, निश्चित कार्य और आचरण करते हैं। इसके आगे प्रत्येक परमाणु दूसरे परमाणु को पहचानते हैं। इसका प्रमाण अणुओं के रूप में परमाणुओं का होना स्पष्ट है। प्रत्येक परमाणु सजातीय और विजातीयता को भी पहचानते हैं, इसका प्रमाण रासायनिक द्रव्य हैं। रासायनिक द्रव्यों का तभी प्रकटन होता है। इसके मूल में उदात्तीकरण ही सिद्धांत है। उदात्तीकरण के मूल में विभिन्न प्रजाति के दो अणुएं निश्चित अनुपात सहित संयोजित होकर दोनों अपने-अपने निश्चित आचरण को छोड़ देते हैं तथा तीसरे ही प्रकार के आचरण के लिए तैयार हो जाते हैं। यह समृद्ध पदार्थावस्था के उपरांत ही घटित हो पाता है। पदार्थावस्था अपने सम्पूर्ण समृद्धि को बनाए रखते हुए विभिन्न/सम्पूर्ण रचना वैभवों को स्पष्ट करता है इसका साक्ष्य इस धरती पर दृष्टव्य है। विभिन्न रचनाएँ अपने-अपने मौलिकता के आधार पर बीजानुषंगीय-वंशानुषंगीय विधियों को प्रमाणित करता हुआ देखने को मिलता है। यहाँ यह भी स्मरण रहना आवश्यक है कि मानव ही देखने जानने-मानने-समझने वाला है। देखने का अर्थ समझना ही है। समझने का स्वरूप और प्रमाण जानना-मानना-पहचानना-निर्वाह करना, इनमें नित्य समरसता को अनुभव करना, ऐसे सामरस्यता को सर्वतोमुखी दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्य और आयाम में समाधान के रूप में अभिव्यक्त और संप्रेषित करना ही है। अर्थात् पदार्थावस्था-प्राणावस्था, रासायनिक-भौतिक स्वरूप है। पदार्थावस्था समृद्ध होकर ही रसायन द्रव्यों में परिवर्तित होना स्पष्ट हुआ। इसमें से उदात्तीकरण सिद्धांत से विकास क्रम में स्थित पदार्थावस्था की एक से अधिक इकाईयाँ अपने आचरण को अग्रिम विकास के अर्थ में तिलांजलि देकर तीसरे प्रकार के आचरण को वे सभी इकाईयाँ मिलकर अपनाना ही प्रधान तथ्य है। यहाँ भी सहअस्तित्व में आवर्तनशीलता प्रमाणित होता है।

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