सहअस्तित्व का तात्पर्य ही सभी प्रकटन साथ-साथ होने से है। साथ-साथ होने का तात्पर्य चिन्हित रूप में अलग-अलग आचरण प्रभाव, अविभक्त-विभक्त मानव पहचानने योग्य होने और विकास क्रम में अथवा विकास के रूप में स्पष्ट रहने से है। इस विधि से सम्पूर्ण भौतिक-रासायनिक वैभव विकासक्रम में गण्य होता है। साथ ही इनके योग-संयोग-वियोग विधियों से श्रेष्ठता क्रम में स्पष्ट हो जाती है। विकासक्रम में स्थित सभी भौतिक पदार्थ और रसायन द्रव्य, उनसे घटित घटनाएँ उदात्तीकरण के साथ-साथ सहअस्तित्व इन्हीं के आचरण में दृष्टव्य है। यथा परमाणु-अंश एक दूसरे के साथ निश्चित दूरी, निश्चित कार्य, निश्चित फलन के साथ-साथ परमाणु गठित होता है। इसके मूल में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में ऊर्जा-सम्पन्नता, बल-सम्पन्नता का स्वरूप स्पष्ट किया जा चुका है। इसी आधार पर परमाणु सहज क्रियाकलाप का मानव अपने भाषा में अपने ही दृष्टापद प्रतिष्ठा के अनुरूप व्यक्त करने पर जितने भी परमाणु अंश परमाणु में कार्यरत हैं, वे सब एक दूसरे को पहचानते हैं। प्रत्येक परमाणु गतिपथ और गति पथों सहित कार्यरत रहना, निर्वाह करने का द्योतक है। इस प्रकार प्रत्येक परमाणु अंश पहचानने और निर्वाह करने का प्रवर्तन सम्पन्न रहता है। इसका गवाही यही है, सभी परमाणु अंश किसी न किसी परमाणु गठन में ही कार्यरत रहते हैं। किसी परमाणु अंश गठन से बाहर यदि दिखते हैं अथवा मानव घटित करता है, पुन: वे सब मिलकर परमाणु के रूप में गठित होने के प्रयास में रहते हैं अथवा किसी परमाणु में समावेश होने के प्रयास में रहते हैं। परमाणु अंश से ही पहचानने, निर्वाह करने का क्रियाकलाप, तद्नुसार निरीक्षण-परीक्षण पूर्वक सर्वेक्षित होता है।
एक से अधिक परमाणुओं का गठन को हम अणु कहते हैं। मूलत: परमाणु ही अणु रचना करते हैं। सभी प्रकार के अणु अपने-अपने सजातीय परमाणुओं से रचित रचना है। सम्पूर्ण अणु स्वरूप को एक ही प्रजाति के परमाणुओं से रचित रचना के रूप में अणुओं को देखा जाता है। अणु के अनन्तर ही सजातीय-विजातीय अणु संयोग, बड़े-छोटे भौतिक रचनाएँ होते हैं। यथा धरती-ग्रह-गोल जैसी बड़ी-बड़ी रचनाएँ होती हैं और विभिन्न धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर, विभिन्न प्रकार की मणियाँ, विभिन्न प्रकार की मिट्टी के रूप में रचनाएँ हुई।
ये सब सहअस्तित्व सहज पूरकता उपयोगिता विधि से गठित हुई हैं। एक से अधिक परमाणु अंशों का एकत्रित होना सहअस्तित्व का ही नित्य प्रभाव है - महिमा है क्योंकि अस्तित्व ही सहअस्तित्व है। इस विधि से एक दूसरे को पहचानना, साथ में होना, के स्वरूप को अथवा शुद्ध सहअस्तित्व के स्वरूप को अणु-रचना पर्यन्त शुद्ध तात्विक वस्तु के रूप में देखा जाता है। तात्विक वस्तुएं मिश्रित और यौगिक स्वरूप में प्रवृत्त होना भी सहअस्तित्व का द्योतक है। भौतिक संसार अपने समृद्धि को प्रमाणित करने के लिए मिश्रित