विकल्प रूप में यहाँ मानव के उद्धार का मूल स्रोत है समझदारी। सबसे बड़ी गद्दी है शिक्षण संस्था। उसमें विज्ञान के साथ चैतन्य का अध्ययन होना चाहिये। चैतन्य के अध्ययन के बिना सहअस्तित्व का अध्ययन कैसे होगा? ये दोनों भाग शिक्षा संस्थानों में, शिक्षा वाङ्गमय में, शिक्षा प्रक्रिया में अछूता है। दूसरा, मनोविज्ञान में मानव के अध्ययन के लिये मानव संचेतना समझ में आता है, प्रमाणित हो जाता है, आवश्यकता भी समझ में आती है। इसलिये, संस्कार पक्ष का अध्ययन मनोविज्ञान में होना चाहिये। तीसरा, दर्शन शास्त्र के साथ प्रामाणिकता होनी चाहिए। अभी तक हम मानते रहे हैं कि मानव पढ़ा और पढ़कर सुनाया तो विद्वान हो गया। जबकि ये विद्वान हुआ नहीं रहता। विद्वान, समझदारी का स्वरूप है और विद्या अपने आप में अस्तित्व सहज है। सहअस्तित्व को समझे बिना, जीवन को समझे बिना, मानवीयतापूर्ण आचरण के बिना विद्वान होता नहीं। ये समझ में आता है विचार शैली भी बनता है, योजना भी बनता है, कार्ययोजना भी बनता है फलस्वरूप प्रमाणित भी होता है। अगर हम समझे नहीं तो विचार शैली कहाँ से पायेंगे। बिना समझे जो विचार शैली बनी है उसमें से एक है सुविधा संग्रह के लिए और दूसरी विचार शैली है आदर्शवाद, त्याग, अपरिग्रह, विरक्ति, भक्ति। इसमें भी करोड़ों लोग अपने को लगाए और अपनी धैर्य, साहस, निष्ठा का परिचय दिये। इन दोनों से अखण्ड समाज का कोई रूप रेखा देखने को नहीं मिला। मानव हमेशा अथक परिश्रम करते आया है किन्तु मानव लक्ष्य व दिशा विहीन था। मैंने जो प्रयास किया वह केवल हमारे प्रश्नों के उत्तर के लिए था। हमें स्वर्ग मिलेगा, पैसा मिलेगा, संग्रह मिलेगा ऐसा कोई लक्ष्य मेरा नहीं था। एक ही बात थी हमारे पास शंका है तो उसका उत्तर मिलेगा ही।
मैं योग और संयोग शब्दों का अर्थ बता दूँ। योग का अर्थ है - मिलन। जैसे हम कहीं जा रहे हैं रास्ते में कोई पत्थर, आदमी मिल गया तो योग कहेंगे। संयोग का अर्थ है सम्पूर्णता के अर्थ में मिलन। पूर्ण का अर्थ है मानव का व्यवस्था में जीना। परमपूर्ण का अर्थ है मानव का प्रमाणिक हो जाना। व्यवस्था में जीना, प्रमाणिक हो जाना मानव की चाहत है। किन्तु वह नहीं मिलने पर जो मजबूरी है उस पर चलकर परंपरा के अनुसार ढल जाता है। योग-संयोग सदा-सदा रहता ही है। पूर्णता के लिए कई प्रयास हुए हैं (सफलता एक अलग बात है)। मानव ने पूर्णता के लिए बहुत कुर्बानी दी है। कुर्बानियों का परिणाम तो होता ही है। जब किसी चीज को तोड़ते है तब सफलता तो आखिरी हथौड़े में दिखती है किन्तु उसके पहले लगे सभी हथौड़े नहीं पड़ते तो उस हथौड़े से सफलता नहीं मिलती। सभी चोटों का फल सफलता में समायी है। सफलता मुझे मिली इसमें पहले जो प्रयास हुए उनका भी योगदान है इस प्रकार संपूर्ण मानव के योगदान के फलस्वरूप यह घटना-घटित हुई ऐसा मैं स्वीकारा हूँ।