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बाद आप भी यही सत्यापित करेंगे। इसमें इतना सुख है, इतना तृप्ति है। इस प्रकार सर्वमानव सत्यापित करने के योग्य हो जायेंगे समझदारी के बाद।

समझदारी कहाँ मिलेगा? शिक्षण संस्थाओं में अध्यवसायी विधि से। शिक्षण संस्था क्या है? सभी अभिभावकों की सम्मिलित अभिव्यक्ति है। समझदारी, बोध पूर्वक प्रमाणित करने के लिए जो कार्य है उसका नाम है शिक्षा। समझदारी, प्रमाण बोध हुये बिना शिक्षण कार्य होता नहीं। समझदारी के लिए, शिक्षण संस्थायें जिम्मेदार हैं, हर अभिभावक जिम्मेदार है। हर परिवार शिक्षा के लिये सूत्र है। इसलिये शिक्षण संस्था के लिए एकीकरण, निजीकरण, सरकारीकरण ये सब सोचने से कुछ होगा नहीं और ना कुछ हुआ है। सीधे-सीधे अभिभावक शिक्षण संस्था के रूप में देखा जाना चाहिये। इसी में मानव का कल्याण होगा। समझदारी से यही रूप निकलता है। हमें न्यायप्रदायी क्षमता से निष्णात होना होगा। न्यायप्रदायी क्षमता स्वयं में प्रमाणित होना होगा। ये दोनों चीजों से सम्पन्न होते हैं तभी हम न्याय कर पायेंगे। दोनों चीजों से सम्पन्न होते हैं तभी हम समझते हैं। जब समझेंगे नहीं तब न्याय कैसे करेंगे। बड़े-बड़े न्यायालयों में न्याय को समझा हुआ न्यायमूर्ति नहीं मिलते हैं तो और लोग क्या करेंगे? जीने में कम से कम न्याय तो होना ही चाहिये। इसका प्रमाण है मानवीयतापूर्ण आचरण। मानवीयतापूर्ण आचरण से कम में न्याय तो होता ही नहीं है। इससे ज्यादा जरूरत नहीं है।

चिंतन के साथ जीवन की छह (6) क्रियायें पूरी हो जाती है। विश्लेषण प्रिय, हित, लाभ के अर्थ में बहुत कुछ कर चुके हैं। शरीर की आवश्यकताओं के लिये सामान्य आकांक्षा और महात्वाकांक्षा संबंधी वस्तुओं का उत्पादन बहुत कर चुके हैं। इसके अलावा जो वस्तु है जैसे बम बनाना, मिसाइल बनाना, युद्धपोत आदि बनाना ये चीजें मानवोपयोगी नहीं है। ये निरर्थक हैं और बरबादी के कारण हैं। तर्क विधि से और घटना विधि से यह सिद्ध हो जाता है। तात्विक विधि से, तर्क विधि से, व्यवहार विधि से मानव के लिए वस्तुओं का उपयोग सिद्ध होता है। तात्विक विधि से हम सुखी होना चाहते हैं। हम सुखी होते हैं तात्विक विधि रूप में हम व्यवहारिक हो गये। उसको प्रमाणित करने के लिये हम व्यवहारिक होते हैं यही तर्क विधि है। इस ढंग से तर्क, तात्विक और व्यवहारिक विधि से आदमी के प्रमाणित होने की बात आती है। हम जितना भी बात करते हैं, पढ़ते हैं, लिखते हैं, तर्क विधि के आधार पर करते हैं। सार्थक तर्क तात्विकता को छूता है यही संप्रेषणा की महिमा है।

यदि हमारी संप्रेषणा में अगले व्यक्ति को तात्विकता छू गयी तो हमारी संप्रेषणा सार्थक है। यदि वही तत्व व्यवहार की सार्थकता को इंगित कराता है (व्यवहार में सार्थकता है, मानव का प्रयोजन समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व इन चारों को इंगित करा देना) और बोध कराता है तो व्यवहार ज्ञान अनुभव होता है।

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