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जागृतिपूर्ण जीवन क्रियाकलाप अनुभवमूलक ज्ञान को सदा-सदा के लिये व्यवहार और प्रयोगों में प्रमाणित कर देता है। यही मानव परंपरा सहज आवश्यकता है।

अस्तित्व में अनुभव का परावर्तन = प्रामाणिकता = ज्ञान विवेक विज्ञान = (परावर्तन में)

अस्तित्व में अनुभूत (अनुभवपूर्ण) जीवन = ज्ञाता (प्रत्यावर्तन में)

अस्तित्व = ज्ञेय = सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति

अस्तित्व में अनुभव की स्थिति में ज्ञान, ज्ञेय, ज्ञाता में एकरूपता सहअस्तित्व के रूप में होना देखा गया है जो ऊपरवर्णित विधि से स्पष्ट है।

यह सम्पूर्ण अभिव्यक्तियाँ नियति सहज प्रणाली से ही गुंथी हुई होती है। सहअस्तित्व सहज सम्पूर्ण क्रियाकलाप, सहअस्तित्व में पूरकता, उपयोगिता-उदात्तीकरण, रचना-विरचना के रूप में विकास क्रम में दृष्टव्य है। दूसरी धारा विकास, चैतन्य पद जीवन कार्य, जीवनी क्रम, जीवन जागृति क्रम, जागृति, जागृति पूर्णता और उसकी निरंतरता ही होना दृष्टव्य है। यह सुस्पष्ट हो गया कि नियति क्रम अपने में विकास क्रम, विकास, जागृतिक्रम व जागृति ही है। यह सम्पूर्ण अभिव्यक्ति ही वर्तमान है।

कार्य, कारण, कर्ता : सहज मुद्दे पर भी मानव में चर्चा का विषय रहा है। ऊपर वर्णित दृष्टा, कर्ता, भोक्ता क्रम में कार्य, कारण, कर्ता का स्पष्ट कार्य प्रणाली समझ में आता है। यह मुद्दा रहस्यमय ईश्वर केन्द्रित विचार और अनिश्चियता मूलक वस्तु केन्द्रित विचार के अनुसार सदा-सदा प्रश्न चिन्ह के चंगुल में ही रहते आये। इसका भी कोई समाधान अध्ययनगम्य नहीं हो पाया था। अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित विचारधारा के अनुसार कार्य कारण का दृष्टा जीवन ही है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति रूपी सहअस्तित्व ही कार्य, कारण के रूप में नित्य वर्तमान है। सहअस्तित्व ही कार्य का कारण रूप है। सहअस्तित्व ही कार्य रूप है। क्योंकि सहअस्तित्व में ही सम्पूर्ण नियति सहज क्रियाकलाप दृष्टव्य होना वर्तमान है। अस्तित्व नित्य वर्तमान है ही। अस्तित्व ही नित्य स्थिति रूप में सहअस्तित्व में ही नित्य गति रूप में जड़-चैतन्य प्रकृति होना स्पष्ट है। सहअस्तित्व ही अस्तित्व सहज सम्पूर्ण क्रियाकलाप का कारण है और सहअस्तित्व ही क्रियाकलाप है। अस्तित्व में केवल दृष्टा ही कर्ता पद में होना स्पष्ट है और अन्य सभी पद कार्य पद में ही प्रतिष्ठित है। कार्य-कारण-कर्ता में सामरस्यता ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा का सूत्र बनता है। ऐसी प्रतिष्ठा में ही जीवन जागृति का प्रमाण अनुभवमूलक विधि से व्यवहार में ज्ञान प्रमाणित होना पाया जाता है। अतएव मानव ही कर्त्ता पद में है और सम्पूर्ण अस्तित्व ही कार्य-कारण पद में है। कार्य-कारण विधि से ही कर्त्ता पद प्रतिष्ठा ज्ञानावस्था में देखा गया है।

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