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रोकना है यही सभी राज्यों का कार्यक्रम है। इस बीच जन सुविधा, जन कल्याण के नाम से जन, तन, धन, मन को लगाकर कल्याणकारी कार्य का दावा किया करते हैं यही अभी तक देखने को मिलता है। ऐसी जनकल्याणकारी कार्य दूरसंचार, यातायात, वाहन, सड़क, स्वास्थ्य, जनसुविधा व शिक्षण संस्थाओं के रूप में होना देखने को मिलता है। इस धरती में कलात्मक विज्ञान, तकनीकी, व्यापार की शिक्षा ही स्थापित हुई दिखती है। इस धरती में अभी तक न्याय पूर्ण व्यवहार और समाधानपूर्ण व्यवस्था मानवीयता पूर्ण शिक्षा में प्रवेश ही नहीं हो पाया। जबकि विनिमय व सार्वभौम व्यवस्था ही शिक्षा की सम्पूर्ण आत्मा है। ऐसी व्यवहार शिक्षा के लिये आवर्तनशील अर्थशास्त्र और व्यवस्था, व्यवहारवादी समाजशास्त्र और व्यवस्था, मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान और व्यवस्था अनिवार्यतम स्थिति है। उत्पादन, प्रौद्योगिकी, तकनीकी को हर परिवार में समृद्धि सम्मत विधि से विकसित और स्थापित करने की आवश्यकता है। एक पीढ़ी समृद्ध होता है, आगे पीढ़ी को समृद्ध बनाने के लिये स्थापना कार्य को करते रहता है। समृद्धि के मूल में मानव व्यवहार ध्रुवीकृत होना आवश्यक है। मानव व्यवहार सूत्र मानव की परिभाषा और मानवीयतापूर्ण आचरण के रूप में अनुप्राणित होना देखा जाता है। फलस्वरूप परिवार मानव के रूप में प्रमाणित होना पाया जाता है। शिक्षा-संस्कार से हर मानव में स्वायत्तता प्रमाणित होना ही इसकी सार्थकता है। इन तथ्यों को पहले भले प्रकार से स्पष्ट किया जा चुका है। यथार्थ यही है हर जागृत मानव सुख, शांति, संतोष को ही भोगता है और कोई चीज को भोगता नहीं है। सुविधा-संग्रह भी सुख लक्षित होना सुस्पष्ट हो चुका है। इसी के साथ इसकी क्षणिकता, भंगुरता भी है, अतएव मानव इतिहास रूपी चारों सोपानों में कहीं भी सुख भोग की निरंतरता नहीं हो पायी। अब केवल परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था उसके पाँचों आयामों सहित कार्यप्रणाली में मानवापेक्षा सहित जीवनापेक्षा रूपी सुख, शांति, संतोष, आनंद भोगने में मिलता है। इसे भले प्रकार से हम देख पाये हैं। इस स्थिति के लिये हर व्यक्ति जागृत हो सकता है। इसी तथ्य के आधार पर सर्वसुख समीचीन है। सर्ववांछनीयता भी यही है। इस प्रकार जीवन भोक्ता है, सुख भोग है, भोग्य वस्तु व्यवस्था है। शरीर सहित मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज तथ्यों को भोगता है।

सिद्धी - चमत्कार

सिद्धी-चमत्कार के मुद्दे पर बहुत सारे वाङ्गमय और बहुत सारे लोगों का प्रयास अर्पित हुई। इसी के लिये योगाभ्यास, संयम, शक्तिपात, शक्ति जागरण, इन्द्रजाल, सम्मोहन जैसी प्रयोगों को किया जाना देखा गया है। इसके अलावा भी कितने भी प्रकार से सिद्धी-चमत्कार के लिये प्रयत्न किया जो वाङ्गमय रूप में भी नहीं पाया, ऐसा भी लोगों को देखा गया। ये सबका समीक्षा यही है अभी तक इस धरती पर सर्वशुभ के लिये उपकार, प्रमाण अथवा तर्कसंगत मार्ग जो अध्ययन विधि से बोध हो सके, ऐसा कुछ हो नहीं पाया।

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