पुन: यह सब में से समाधि लक्षित (सम्पूर्ण विचारों का मौन स्थली) प्रवृत्ति कार्य के अतिरिक्त सभी का सभी यश कीर्ति सुविधा संग्रह के लिये किया गया प्रयासों के रूप में परिणितियाँ देखने को मिली। जहाँ तक समाधि के लिये इशारा है यह घोर परिश्रम के अनन्तर होने वाली स्थली के रूप में देखा गया। इस स्थिति में सर्वसुख का कोई भी तरीका उपजता नहीं। इसलिये इसे स्वान्त: सुख कहा गया। यह सही होना देखा गया है परन्तु अस्तित्व में सिद्धी और चमत्कार के रूप कोई चीज नहीं है। जो कुछ है क्रमबद्ध है, नियमित है, संतुलित है और व्यवस्थित है। मानव कुल अभी तक व्यवस्था को ही पहचानने के क्रम में भयादि चारों सीढ़ियों को पार किया है।
सर्वशुभ समझदारी से ही है।
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