बना रहता है। इस शताब्दी के मध्यावधि से अभी तक सर्वधर्म सम्मेलन के नाम से अनेकानेक भाषण करने वाले विभूतियों को देखा गया है। सब अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हैं। कभी-कभी एक दूसरे को सराहते भी हैं। इसके बावजूद कौमी मजहबी संघर्ष, दूसरे विधि से कौमी मजहबी मानसिकता के आधार पर राज्यों के साथ संघर्ष, सत्ता हथियाने, दमन करने, तंग करने का प्रयास देखा गया है। जबकि मानव जाति एक है, धर्म एक है फलस्वरूप अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था, शांति, न्याय, सुरक्षा, समृद्धि, समाधान, सहअस्तित्व, वर्तमान में विश्वास जागृति सहज विधि से नित्य समीचीन है ही। यही अनुभवमूलक आदर्शवाद मानवीयता सहज समाधानात्मक भौतिकवाद का स्वरूप है। अनुभवमूलक विधि से ही जागृति का प्रमाण होना देखा गया है।
भ्रम पर्यन्त अधिकारों के प्रति पागल होने के अनंतर कम से कम कुछ लोगों को घायल किये बिना रहा नहीं जा सकता। मूलत: अधिकार तंग करने के अर्थ में ही ख्यात है। कुछ लोग तंग होने के लिये अर्थात् शोषित होने के लिये तैयार भी बैठे रहते हैं। मानव पुरूष हो या स्त्री हो वह सदा-सदा शरीर यात्रा काल में पाँच कोटि में ही गण्य होता है। वह क्रम में जागृति पूर्ण मानव ही दिव्यमानव, जागृत मानव ही देवमानव और मानव, अजागृत पशु मानव व राक्षस मानव के अर्थ में अमानव गण्य होना देखा गया है। जीवन में ही दृष्टि, स्वभाव और प्रवृत्तियाँ होना अध्ययन गम्य है और स्वयं में अनुभव किया गया है, हर व्यक्ति अनुभव कर सकता है। अतएव मानव ही सत्यापित करने के लिये मानव से ही सत्यापित होने के लिये मानव में ही सम्पूर्ण सत्यापन उद्गमित होना देखा गया है। यही सत्यापन अभिव्यक्ति संप्रेषणा के अर्थ में गण्य होता है। अस्तित्व सहज पदार्थावस्था, प्राणावस्था और जीवावस्थाएँ अपने-अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था के अर्थ में परंपरा के रूप में प्रकाशमान है ही।
अस्तित्व सहज सभी अवस्थाओं का दृष्टा, मानवीयता पूर्ण क्रियाकलापों का कर्ता, मानवापेक्षा सहज समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व का भोक्ता केवल मानव ही है। अस्तित्व में अनुभव सहज अभिव्यक्ति ही यह सत्यापन और सत्यापन विधि होना पाया गया है। यही मानव परंपरा का मौलिक वैभव है। यह सर्वसुलभ होने के लिये परंपरा ही जागृत होना अति अनिवार्य है। इस बीसवीं शताब्दी की दसवें दशक तक इस धरती के मानव विविध प्रकार से अथवा उक्त दोनों प्रकार से यथा भौतिकवादी और आदर्शवादी विधि से मानव को भुलावा देकर ही सारे धरती का शक्ल बिगाड़ दिया। और दूसरे विधि से मरणोपरांत स्वर्ग और मोक्ष के आश्वासन में लटकाया। जबकि मानव शरीर यात्रा के अवधि में ही जागृति अनुभवमूलक प्रमाण, प्रामाणिकता मानव के लिये एक मात्र शांति पूर्ण समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज आनन्दित होना देखा गया है। यही जागृति सहज प्रमाण है। आडम्बर मूलत: भ्रमवश