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सुलभता, उत्पदान-कार्य सुलभता, विनिमय-कोष सुलभता, स्वास्थ्य संयम सुलभता नित्य वैभव के रूप में इसी धरती पर वैभवित होना सहज है, नियति है, एक अपरिहार्यता है। ऐसी ऐश्वर्य सम्पन्न मानव परंपरा महिमा से ही अनेक राज्य, समुदाय सम्बन्धी अधिकारोन्माद समापन होना स्वाभाविक है। इसका समापन और मानवीयता का उदय अर्थात् जागृति ही मानव परंपरा में, से, के लिये मौलिक संक्रमण और परिवर्तन है।

मानव जाति, मानव धर्म एक ही है और धरती एक है। इस आधार पर अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था मानव परंपरा में वैभवित होना सहज है। इसी के साथ राज्याधिकार उन्माद समापन होने के साथ-साथ सामुदायिक धर्मोन्माद, बनाम संप्रदाय-मत-पंथों का भ्रम और उन्माद अपने-आप दूर होता है। अखण्ड समाज विधि से सहज होने के कारण, सर्वसुलभ होने के कारण मानव परंपरा में सुख-शांति का सूत्र अपने-आप प्रभावशील होने लगता है। सुख-शांति के लिये विविध धर्म कहलाने वाले अथवा सामुदायिक धर्म कहलाने वाले संप्रदायों का आशय रूप में जो सुख शांति की अपेक्षा और आश्वासन के बीच ये सभी गद्दियाँ अपने को सम्मानशील बनाये रखे हैं। सभी मानव इनकी आवश्यकता को मूल्यांकन करने योग्य होता है फलस्वरूप ये सब भ्रम अपने आप दूर होने की व्यवस्था समीचीन है।

उत्पादन सुलभता अर्थात् परिवार में जितने भी परिवार मानव रहते हैं उन सबकी आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य होना परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था क्रम में सहज और सुलभ है। इस विधि से हर परिवार समृद्ध होने सहज समीचीनता सुलभ रहता ही है। इसी के साथ श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय प्रणाली सर्वसुलभ होता ही है। इस विधि से लाभ-हानि मुक्त विनिमय सम्पन्न होना सहज है। फलस्वरूप लाभ से होने वाली अहमता (अहंकार) और हानि से होने वाली पीड़ा से मुक्त होना स्वाभाविक रहता ही है। समाधान, समृद्धि, शांति और सुख का सूत्र होना और न्याय सुलभता के साथ ही वर्तमान में विश्वास होना देखा गया है। बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक तक यह प्रणाली मानव कुल में प्रभावी नहीं हुई है। इस स्थिति में भी यह अनुभव किया गया है स्वायत्त विधि से किया गया उत्पादन कार्य से समृद्धि का और संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभय तृप्ति विधि से न्याय का प्रमाण हमें सुलभ हो चुका है। अब रहा विनिमय प्रणाली अभी तक प्रचलित लाभोन्मादी के अर्न्तगत ही हम लेन-देन जैसा उत्पादन और विनिमय मुद्रा के आधार पर करते हुए भी समृद्धि का अनुभव किया। इसलिये और कहा जा सकता है कि लाभ-हानि मुक्त विनिमय प्रणाली प्रत्येक परिवार में, से, के लिये शांति कारक सूत्र होना देखा गया।

स्वास्थ्य-संयम जागृति विधि से अर्थात् अनुभव विधि से स्वायत्त होना सहज है। संबंध-मूल्य-मूल्यांकन-उभयतृप्तिकारी मानसिकता स्वयं का प्रमाण है और स्वास्थ्य समाधान, सहअस्तित्व, वर्तमान में विश्वास,

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