को देखा गया है। इन तीनों विधा के लिये अथवा इन विधाओं को पहचानने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता को विज्ञान संसार में स्वीकारा गया है। यह अपने से गति ऊर्जा कहना आरम्भ करते हैं यथा चुम्बकीय धारा को विद्युत गति के रूप में परिणत करना इस गति को और गति विधा में चलकर तरंग का नाम लेते हैं। ऐसी तरंग वस्तु है या अवस्तु है इस तथ्य को उद्घाटित करने के लिये अभी भी प्रयोग करते जा रहे हैं। जो प्रयोग परिणीतियाँ आती है उसे अंतिम सत्य नहीं मानते हुए प्रयोगों के लिए मार्ग प्रशस्त किये रहते हैं। इस विधा में अनिश्चयता बनी ही है - वस्तु है या अवस्तु है।
इसी अनिश्चयता के स्थिति पर मानव अपने को समझा हूँ, नहीं समझा हूँ इस बात को लेकर कुंठित हो चुके हैं। इन्हीं सिद्धांतों के शाखा-प्रशाखा होने के कारण और अलग-अलग से समीक्षीत करने की आवश्यकता नहीं है। अतएव विज्ञान संसार में लगे हुए जितने भी मानव हैं वे अपने को समझदार सत्यापित करने में असमर्थ हैं क्योंकि विशेषज्ञता का चक्कर विचार के शुरुआत से काला दीवाल तक चलता है। दूसरी ओर शिक्षा के कला पक्ष के विशेषज्ञ कहलाने वाले, विविध समुदाय में पनपी हुई रुढ़ी-आदतों को शादी-विवाह, नाच-गाना, उत्सवों को मनाने के तरीकों को संस्कृति मानते हुए समाजशास्त्र के नाम से पढ़ाया करते हैं। वे विशेषज्ञ जिसको पढ़ाते हैं उसमें विश्वास नहीं रखते हैं। उससे भिन्न रुढ़ी, भिन्न आदतों के साथ भिन्न मानसिकता को बनाए रखते हुए दिखते हैं। अंतिम बात वर्तमान समाज एक संघर्षशील मानव समुदाय है। संघर्ष का आधार व्यक्ति-व्यक्ति में मानसिक मतभेद रूढ़ी-रूढ़ी के बीच आलोचना, नशा-पानी, नाच-गाने में विविधता, प्रतिस्पर्धा के रूप में होना देखा गया है। इसी प्रकार खेल-कूद, भाषण-प्रतियोगिताएँ-प्रतिस्पर्धा के आधार पर पहचानने की पंरपरा अभी तक है। प्रतिस्पर्धाएँ विरोध, द्वेष जैसी संकटों को झेलता हुआ घटना होना देखा गया है। धर्म और राज्य में संघर्ष है ही और यह भी कलात्मक शिक्षा प्रणाली पद्धति में गण्य है। इसका समीक्षा यही है विज्ञान विधा से यंत्र प्रमाण के आधार पर अनिश्चियता-अस्थिरता का काला दीवाल और कलात्मक शिक्षा विधा से विरोध, विद्रोह-द्वेष जैसी अवांछनीय काला दीवालें अथवा स्वीकृतियाँ मानव परंपरा को भ्रमित करने का आधार सूत्र के रूप में बनी। सारे लोग प्रयत्न करते हुए भी सही मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ। अतएव अनुभवमूलक व्यवहार प्रमाण प्रस्ताव का अनिवार्यता बना ही रहा। इसलिये अभी प्रस्तावित होकर मानव स्वीकृत होना संभव हो गया।
यह प्रस्ताव मूलत: समानता के आधार पर प्रस्तुत है। समानता, निश्चयता और स्थिरता का प्रमाण है।
स्थिरता और निश्चयता का स्वरूपों को अध्ययन करने के लिये (1) अस्तित्व (2) परमाणु में विकास
(3) परमाणु ही व्यवस्था का आधार (4) सहअस्तित्व में व्यवस्था (5) व्यवस्था सूत्र (“त्व” सहित व्यवस्था) (6) पूरकता-उदात्तीकरण, रचना-विरचना (7) पूरकता-उदात्तीकरण और संक्रमण (8) परमाणु ही