मूलभाव बनाम अस्तित्व नित्य वर्तमान ही है। अस्तित्व स्वयं में व्यवस्था सहज स्वरूप में होने के कारण और व्यवस्था ही नित्य भाव होना स्पष्ट है, शाश्वत् है। यही प्रधान-मुद्दा है। इसे हर मानव समझना चाहता है और हम समझा सकते हैं। अस्तित्व ही वर्तमान सहज होने के कारण जीवन सहज रूप में हर मानव अस्तित्व को स्वीकारा ही रहता है बनाम व्यवस्था को स्वीकारा ही रहता है। इस संक्षेप विधि से ही अस्तित्व सहज स्वीकृति सर्वेक्षित होता है और सत्यापनवादी सर्वेक्षण विधि से हर मानव व्यवस्था को वरना पाया गया है। साथ ही इस दशक में शरीर यात्रा करता हुआ मानव को यह पूछने पर कि आप क्या व्यवस्था को जानते है ? उत्तर नकारात्मक मिलता है। अन्ततोगत्वा अनिश्चियता और अस्थिरता का जनमानस में समावेश होते ही आया है। अस्थिरता, अनिश्चिततावश ही मानव आतुर-कातुर होना, सुविधा संग्रह के लिये और पीड़ित होना भी देखा गया है।
अनुभव जीवन में होता है या शरीर में होता है यही मुख्य बिन्दु है - यह तथ्य विदित हो चुका है - जीवन ही शरीर को जीवन्त बनाए रखता है। जीवन्त शरीर ही जीवन से संचालित होता है। इसी तथ्य-पुष्टि के क्रम में शरीर अपने-आप में कैसा है ? कैसे रचित और विरचित होता है इसे मानव आदिकाल से देखते आ रहा है। मुख्य मुद्दा - परमाणु में विकास, पूरकता, गठनपूर्णता, संक्रमण इन तथ्यों को भले प्रकार से समझ चुके हैं। अतएव इसे समझना हर व्यक्ति के लिये आवश्यक है। चैतन्य प्रकृति, जड़ प्रकृति यह प्रकृति समुच्चय है। जड़ प्रकृति रासायनिक-भौतिक वस्तु व द्रव्यों से संरचित रहते हैं। यह रचना-विरचना का स्रोत यह धरती ही है। स्वयं धरती भी एक रचना है। इस धरती पर जब तक विकास दिखती रहती है तब तक इसके स्वस्थता में कोई शंका नहीं है। विकास और उसकी निरंतरता की व्यवस्था अस्तित्व सहज रूप में विद्यमान है। पदार्थावस्था और प्राणावस्था की सम्पूर्ण रचना-विरचनाएँ परिणाम और बीज के आधार पर परंपरा के रूप में तत्पर रहना देखा जाता है। इसी आधार पर हर मानव अस्तित्व में अनुभूत होने की सूत्र जुड़ी हुई हैं।
मानव शरीर द्वारा जीवन सहज पूर्ण जागृति प्रमाणित होने की व्यवस्था, आवश्यकता अस्तित्व सहज रूप में ही निहित है क्योंकि अस्तित्व स्थिर है, विकास एवम् जागृति निश्चित है। जागृति को प्रमाणित करना जीवनापेक्षा है। जागृति सुख, शांति, संतोष, आनन्द है। इसे भले प्रकार से देखा गया है। इसकी जीवन सहज निरंतरता होती है क्योंकि जीवन नित्य है। जीवन सहज जागृति अक्षुण्ण होना भावी है। ऐसी जागृति और जागृति की अक्षुण्णता की प्यास हर व्यक्ति में निहित है। अतएव जीवन जागृति प्रणाली को परंपरा में अपनाना एक अनिवार्यता हैं।