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खोजते आ रहे हैं। इसी के साथ प्रयोग दर प्रयोग के परिणिति को अंतिम सत्यता मानते हुए अबाध गति से प्रयोगों को बुलंद किये रहते हैं।

इन दोनों की समीक्षा यही है कि चेतना से पदार्थ और पदार्थ से चेतना इस दशक तक प्रमाणित नहीं हुआ। भक्ति-विरक्ति प्रयोगों का अबाध गति, इन दोनों क्रम में सत्य सहज सुलभ होने का कोई मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ। वस्तुवादी, यंत्रों को प्रमाण मानते हैं; आदर्शवादी, आदर्श व्यक्तियों को प्रमाण मानते आये है। आदर्श व्यक्तियों के पहचान का पृष्ठभूमि भक्ति-विरक्ति ही है। यंत्र प्रमाण मानने की पृष्ठभूमि प्रयोगशाला ही है - वह भी स्वयं यंत्रोपकरण ही है। आदर्श व्यक्तियों को ‘आप्त पुरूष’ नाम दिया है उनके वचनों को प्रमाण माना गया है। जबकि वस्तुवादी विधि से पारंगत यंत्रों को प्रमाण माना, प्रयोगों, नियमों को प्रमाण माना और आदर्शवादियों ने व्यक्ति का सम्मान किया।

इन दोनों प्रकार के मानव बहुसंख्या में इस धरती पर प्रसिद्ध हुए हैं। प्रसिद्ध होने का तात्पर्य है बहुत सारे लोगों को ज्ञात हुआ है। अभी भी दोनों विधा से ख्यात व्यक्ति इस दशक में भी देखने को मिलते हैं। इसी शताब्दी के अर्ध शतक से देखते भी आये हैं।

इन्हीं दो प्रकार से बताए गये मनीषीयों के प्रेरणा से ही इस धरती के सभी सामान्य लोग कार्य-व्यवहार-विचार करते आये हैं। इसका परिणाम आज की स्थिति में अर्थात् बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक में मानव-मानव के साथ संघर्षशील, प्रदूषणरूपी विकृत पर्यावरण वश पीड़ा, संकट, रोग, बढ़ती हुई जनसंख्या, बेरोजगारी, अनानुपाती सुविधा-संग्रह का होना, हर दिन कल के लिए अधिक मुद्रा की आवश्यकता, स्त्रोत की क्षीणता, धरती का शक्ल बिगाड़ना, पानी का संकट, सामान्य सुविधाएं सर्वदेश सभी लोगों के लिए सुलभ नहीं हो पाना, शोषण का अनुपात बढ़ते जाना, मानव-मानव का शोषण, प्राकृतिक संपदाओं का शोषण, बिगड़ा हुआ पर्यावरण और बिगड़ने की संभावना बढ़ते जा रही है। फलस्वरूप विविध प्रकार से सभी लोग कुण्ठाग्रसित रहते हैं।

शिक्षा की विडम्बना यही है कि विज्ञान विधा से, विशेषज्ञता से प्रभावित है। विशेषज्ञता किसी विधा के किसी अंश में अपने को प्रतिष्ठित करने के प्रत्यत्नों में कार्यरत होना पाया जाता है। पुन: उसका अंश और उसके अंश के रूप में प्रयासों का उदय देखने को मिल रहा है। फलस्वरूप विशेषज्ञता प्रयोजनविहीन काला-दीवाल के सम्मुख सभी विधाओं में आ चुके हैं। जैसे - मात्रा विज्ञान अस्थिरता-अनिश्चयता के काला दीवाल के सम्मुख है। इसके विशेषज्ञ अपना मूल्यांकन करने में निरीह देखा गया है। दूसरा वंशानुषंगीय विज्ञान यह मानव को अध्ययन कराने में विश्लेषित करने में सर्वथा असमर्थ होकर काला दीवाल के सम्मुख होना देखा गया। तीसरा सापेक्षवाद अपने कल्पना को अज्ञात घटना के साथ वर्णित करने के रूप में विशेषज्ञों

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