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हो पाता है। देखा हुआ तथ्य यही है कि जीवनापेक्षा सफल होने की स्थिति में मानवापेक्षा और मानवापेक्षा सफल होने की स्थिति में जीवन-अपेक्षा सफल होता है। इस प्रकार जीवन और मानव अपेक्षा का संतुलन बिन्दु समझ में आया है। इन्हीं यथार्थतावश अनुभवमूलक विधि को मानव परंपरा अपनाना एक आवश्यकता है। इसलिये प्रस्ताव के रूप में यह “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” मानव के कर कमलों में अर्पित है।

जय हो ! मंगल हो !! कल्याण हो !!!

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