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परंपराएँ अस्तित्व सहज है। अस्तित्व स्वयं सहअस्तित्व होना ही परंपरा होने का नित्य सूत्र है। सहअस्तित्व स्वयं नित्य विकास और परंपरा है। इस प्रकार देखा गया है कि परमाणुओं में अपने प्रजाति की परंपरा है। परमाणु में परमाणु अंशों की संख्या रचना विधि सहजता सहित प्रकाशमान है। अनेक परमाणु का सहअस्तित्व में अणु रचना, उसमें निहित परमाणु संख्या और परमाणुओं में अंशों के संख्या में दूसरे प्रजाति सहित अणु प्रजातियाँ परंपरा के रूप में होना स्पष्ट है। अणुरचित रचनाओं में अनेक अणु प्रजाति और अणुओं का अनुपात के आधार पर ही रासायनिक-भौतिक रचनाएँ सम्पन्न होते हुए देखने को मिलता है। इसी क्रम में पदार्थावस्था प्राणावस्था जड़ प्रकृति के रूप में, जीवावस्था और ज्ञानावस्था चैतन्य प्रकृति के रूप में सहअस्तित्व सहज विधि से प्रकाशित है। चैतन्य प्रकृति में जीवन और शरीर का सहअस्तित्व होना देखा जाता है। जीवन अपने में गठनपूर्णता पद में संक्रमित चैतन्य इकाई है। यही चैतन्य प्रकृति है। जीवन सहित शरीर परंपरा ही दूसरे भाषा में जीवन से जीवंत शरीर परंपरा ही जड़-चैतन्य प्रकृति के संयुक्त रूप में गण्य होना पाया जाता है। अस्तित्व में सहअस्तित्व नित्य प्रभावी होने के कारण जड़-चैतन्य प्रकृति का सहअस्तित्व होना सहज है। जीवन सहज वांछा (आशा, विचार, इच्छा के रूप में देखने को मिलता है) जीने की आशा, जीवन में ऐश्वर्य होने के कारण अपना महिमा होने के कारण सहअस्तित्व में ही जीने का प्रमाण प्रस्तुत करना ही चैतन्य प्रकृति का कार्यकलाप होना देखा गया है।

सहअस्तित्व में अनुभव ही परम सत्य प्रकाशन है और अस्तित्व ही सहअस्तित्व है। फलस्वरूप परस्परता पहचान, निर्वाह सहज विधि है। इसी क्रम में चैतन्य प्रकृति भी अस्तित्व सहज है। परमाणु रचना कार्य और परिणाम भी सहअस्तित्व सहज है। क्योंकि हर परमाणु में एक से अधिक परमाणु अंशों का होना पाया जाता है। यह परमाणु अंश ही स्वयं-स्फूर्त विधि से परमाणु गठन और निश्चित कार्य को प्रकाशित करते हैं। एक-दूसरे के साथ परमाणु अंश भी निश्चित कार्य करने के लिये तत्पर रहते हैं। मानव का हस्तक्षेप विहीन स्थिति में इनमें कोई बाधाएँ होती नहीं है। परमाणु में अंशों का आदान-प्रदान क्रिया जो सम्पन्न होता है वह भी सहअस्तित्व विधि सूत्र के अनुसार है। सहअस्तित्व ही स्वयं-स्फूर्त प्रकटन व्यवस्था होना उक्त प्रकार से सम्पूर्ण प्रकृति का मूलरूप साम्य ऊर्जा सम्पन्न परमाणु के रूप में व्यवस्था और व्यवस्था का स्रोत दिखाई पड़ता है। ऐसे स्वयं-स्फूर्त परमाणु अंश व्यवस्था के रूप में व्यक्त होने में तत्परता सहित हर परमाणु रचना-गठन-क्रिया सम्पादित होते हुए देखने को मिलता है। इसी क्रिया के आधार पर श्रम, गति, परिणाम प्रकाशित है। अतएव इन्हीं की तृप्ति क्रम में तृप्ति के अर्थ में विकासक्रम, विकास और जागृति प्रकाशित है और अभिव्यक्त है।

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