रूप में अहिंसक, सहयोगी, सहकारी, सहगामियों के रूप में पहचाना जाता है। किसी न किसी अंश में हर आदमी में यह गुण होता ही है। ऐसे गुण कार्य जिनसे अधिकाधिक सम्पन्न होता है ऐसे आदमी को हम भले आदमी कहते हैं। ऐसे भले आदमी को तंग, परेशान, पीड़ित करने का कोई इरादा नहीं रखता है। तब अस्तित्व में अत्याधिक भला वस्तु यदि हो वह किसी को बंधनों से बांधकर क्लेशित कर प्रसन्न होने की कोई विधि व्यवहारिक तर्क के रूप में स्पष्ट नहीं होती। व्यवहारिक तर्क का मतलब मानव, मानव के साथ जो तर्क करता है। उसी में जो भलमनसाहत मूल्यांकित होता है इस दायरे में समुचित उत्तर निकलता नहीं है।
दूसरे विधि से बाँधने वाला बहुत दुष्ट, राक्षस और जीवों का क्लेश, दुख, पीड़ाओं को देखकर बड़ा अट्टहास करने वाला है। उनसे कोई ताकतवर वस्तु अस्तित्व में होगा जो उसके शिकंजे से छुड़ा देता है। यदि ऐसा कोई घटना, संयोग होती ऐसे ताकतवर चीज, ऐसे दुष्ट राक्षस को रहने ही नहीं देता, सबको मुक्त कर देता। ऐसा भी कुछ इस धरती में मानव के साथ प्रमाण रूप में घटित हुआ नहीं है। ऐसा होने की स्थिति में हर व्यक्ति मुक्त ही मिलता। हर व्यक्ति को परंपरा यह मूल्यांकन करता हुआ मिलता है पापी, अज्ञानी और स्वार्थी, यही बंधन का गवाही है, क्लेश का स्वरूप है। हर समुदाय परंपराएँ धार्मिक कार्यक्रमों के मूल में दोहराया करते हैं। इस तर्क विधि से भी कोई व्यवहारिक उत्तर सुलभ नहीं होती है।
इन दोनों विधि से बन्धन का कारण ही स्पष्ट नहीं हो पाता है। मोक्ष (मुक्ति) के लिये जितने भी उपाय कहे गये हैं उनमें शंका स्वाभाविक रूप में रह ही जाती है। इसलिये मोक्ष किसको हुआ, कोई प्रमाण नहीं है। मोक्ष के लिये जितने भी उपाय बताये गये हैं, उसमें से कोई एक भी विधि सबको स्वीकार हुआ नहीं और कोई भी विधि स्वीकार हुआ हो, उसका फलन अर्थात् ‘मोक्ष रूप’ होने का प्रमाण किसी भी परंपरा से निकल नहीं पाया। इसीलिये मोक्ष किसी को समझ में आया है, नहीं आया है, इसको कहना अथवा निश्चय करना उक्त दोनों विधि से सम्भव नहीं हुआ।
‘वस्तु’ के रूप में बन्धनकारी वस्तु जिसका कार्यक्रम बन्धन में डालते रहना है, बन्धन में आने वाली वस्तु और बाँधने वाले के साथ इनका संयोग विधि स्पष्ट नहीं हो पाया। इसमें सदा-सदा तर्क और कल्पना का दोहराना, नवीनीकरण करने की संभावना बना ही रहा। इसलिये अवसरानुसार नवीनीकरण करते रहे। दूसरा यह भी है विभिन्न जलवायु में रहकर कल्पना सहज तर्क को विभिन्न विधि से प्रस्तुत किया। यह सब एक जगह में देखने सुनने की स्थिति में मानव अपने पुरुषार्थ से एक दूसरे देश, द्वीप पहुँच कर एक दूसरे का भाषा, विचारों को समझने की कोशिश किया।