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4. ‘वस्तु’ के रूप में ऊपर कहे गये तीनों कहाँ है?

अस्तित्व में ही जीवन है। जीवन अपने लक्ष्य रूपी जागृति को प्रमाणित करने के पहले भ्रमित रहता है। जैसे सही करने के पहले गलती करता है। परम जागृति जीवन का लक्ष्य है और परम जागृति अस्तित्व में अनुभव सहज प्रमाण ही है। इस प्रकार जीवन जागृति क्रम में भ्रम बन्धन को व्यक्त करता है, पीड़ित होता है, फलस्वरूप जागृत होने की आवश्यकता बनती है। इस प्रकार अस्तित्व नित्य वर्तमान, अस्तित्व में जीवनी क्रम, जीवन जागृति क्रम, जागृति और जागृति पूर्णता अस्तित्व सहज जीवन में, से, के लिए सम्पूर्ण प्रमाण सहज क्रियाकलाप है।

5. क्यों ऐसे बन्धन कृत्य को करता है?

जीवन जागृति क्रम सहज विधि से भ्रम बन्धन का पीड़ा अपने आप स्पष्ट होता है। इसे जीवन ही स्वीकारता है। भ्रमात्मक कार्यकलाप जीवन में से साढ़े चार क्रिया के रूप में ही निष्पन्न होती है। जीवन में जागृति दस क्रिया के रूप में होना एक आवश्यक मंजिल होना, उसकी निरंतरता प्रमाण रूप में स्वाभाविक होना देखा गया। भ्रमबन्धन पूर्वक मानव परंपरा अनेक समुदायों में है, जागृति और जागृति पूर्णता उसकी निरन्तरता सहज वैभव के रूप में अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था वैभवित होती है। इस प्रकार अस्तित्व में भ्रम बन्धन को व्यक्त करने का वस्तु जीवन है। भ्रम को स्वीकारने वाला वस्तु जीवन ही है और भ्रम बन्धन से पीड़ित होने वाला वस्तु जीवन ही है एवं जागृत होने वाले वस्तु जीवन ही है। उसकी जागृति की निरन्तरता को व्यक्त करने वाला भी जीवन ही है। जीवन सहअस्तित्व में अविभाज्य है। जागृति क्रम में भ्रम बंधन रूप में, जागृति भ्रम मुक्ति है।

6. जो बन्धन था, मुक्ति पाने के बाद उसका प्रयोजन क्या है?

जीवन जागृति अर्थात् मानव चेतना, देव चेतना पूर्णता में, दिव्य चेतना सहज प्रमाण और जागृति पूर्णता के अनन्तर उसकी निरंतरता का परंपरा के रूप में होना नियति क्रम व्यवस्था है। इस सत्यता के आधार पर जागृति पूर्णता विधि से मानव परंपरा वैभवित होना ही इसका प्रयोजन है। जीवन नित्य होने के कारण जागृति भी नित्य होना स्वाभाविक है। इन क्रम में बन्धन, भ्रम, समस्या से ग्रसित बुद्धिजीवी बनाम शब्दजीवी में यह तर्क उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि जागृति क्रम की भी निरंतरता होना चाहिए। इसके लिए जागृति पूर्ण प्रणाली से उत्तर यही है कि जागृति क्रम विधि से जीवन अथवा भ्रम बन्धन विधि से जीवन शैशवकाल से शरीर संचालन करता हुआ मानव संतान जागृत होने का अभिलाषा सहित व्यक्त होने के आधार पर अथवा प्रकाशित होने के आधार पर जागृति क्रम और जागृति पूर्ण परंपरा स्वाभाविक रूप में सहज विधि

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