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उक्त क्रम से बौद्धिक रूप में समाधानित होना स्वभाविक है यह तथ्य स्पष्ट हो गया। यह तथ्य भी जागृति का ही द्योतक है। जागृति के अनन्तर हर व्यक्ति स्वाभाविक रूप में असंग्रह प्रतिष्ठा को समृद्धि पूर्वक, स्नेह प्रतिष्ठा को पूरकता पूर्वक, विद्या प्रतिष्ठा को जीवन विद्या पूर्वक, सरलता प्रतिष्ठा को सहअस्तित्व दर्शन पूर्वक, अभय प्रतिष्ठा को मानवीयता पूर्ण आचरण पूर्वक वैभवित होने के लिए सूझ-बूझ पूर्वक कार्य करता हुआ देखने को मिलता है। यही मुख्यत: बौद्धिक नियम है। ऐसे बौद्धिक नियम सम्पन्न मानव स्वाभाविक रूप में मानवीयता पूर्ण आचरण सम्पन्न होता है जो मूल्य, चरित्र, नैतिकता का अविभाज्य वैभव है। जिसमें से मानवीयतापूर्ण चरित्र जो स्वधन, स्वनारी/पुरुष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार है। जो अखण्ड सामाजिक नियम के रूप में प्रभावित होता है। संबंधो में मूल्यों को पहचानना, निर्वाह करना, मूल्यांकन करना फलस्वरूप उभय तृप्ति ही मानवीय मूल्य का स्वरूप है। तन, मन, धन का सदुपयोग एवं सुरक्षा नैतिकता है। यद्यपि पहले भी सामाजिक नियम और प्राकृतिक नियम का विस्तृत व्याख्या कर चुके हैं। यहाँ जागृति और प्रामाणिकता पूर्वक उक्त तथ्यों को स्मरण में लाना उचित समझा गया है। यहाँ उल्लेखनीय तथ्य यही है अस्तित्व स्वयं सहअस्तित्व के रूप में नियमित है फलत: अस्तित्व में व्यवस्था अक्षुण्ण है। मानव भी अस्तित्व में अविभाज्य है। अतएव नियम त्रय पूर्वक ही मानव मानवापेक्षा और जीवन अपेक्षा को सार्थक बना सकता है।

इस सहज आशय के साथ ही यह तथ्य हर मेधावी व्यक्ति में,से, के लिए स्पष्ट होना स्वाभाविक है कि हम सर्वमानव बंधन मुक्ति रूपी जागृतिपूर्वक ही सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न होते हैं। ऐसे जागृति सम्पन्नता में, से, के लिए मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार विधि ही एक मात्र उपाय है। मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार का मूल वस्तु जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान है। यह मानव जागृति पंरपरा के लिए सार्थक सिद्ध होता है।

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