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गुरु-शिष्य संबंध में शिक्षा, ज्ञान, दर्शन का पुष्टि और संरक्षण; भाई-बहन, मित्र, पति-पत्नी, साथी-सहयोगी इन सभी संबंधों में सर्वतोमुखी समाधान (अभ्युदय) की अपेक्षाएँ जीवन सहज रूप में ही होना देखा गया है। इतना ही नहीं सभी संबंधों में किंवा नैसर्गिक संबंधों में भी समाधान, पुष्टि, पोषण, संरक्षण की अपेक्षा, आवश्यकता, प्रवृत्ति जीवन सहज रूप में आंशिक रूप में भ्रमित अवस्था में भी होता है। इसमें पूर्ण जागृत होने की संभावना समीचीन है। इस शताब्दी के दसवीं दशक में इसकी अपरिहार्यता अपने आप में समीचीन हुई है कि मानव इतिहास के अनुसार गम्य स्थली के रूप में सर्वतोमुखी समाधान और प्रामाणिकता ही है। कार्यरूप में सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी ही कार्य है। आचरण के रूप में मानवीयतापूर्ण आचरण ही एक मात्र सूत्र है। अनुभव के सूत्र में सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण ही सूत्र है। विश्लेषण के रूप में पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञानावस्था ही है। उपलब्धि के रूप में जो मानवापेक्षा सहज विधि से समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व अनुभव सहज प्रमाण ही है। जीवन अपेक्षा सहज रूप में तृप्ति, सुख, शांति, संतोष, आनन्द ही है। जागृतिपूर्ण विधि से जीने के क्रम में सहअस्तित्व ही विशालता है। ये सब बन्धन मुक्ति का साक्ष्य है। जागृतिपूर्ण विधि से किया गया मानव सहज अभिव्यक्तियाँ है। यह सभी तथ्य को विधिवत देखा गया है, समझा गया है, जीया गया है और अंत में मानवीयतापूर्ण आचरण व्यवहार पूर्वक हर व्यक्ति सर्वतोमुखी समाधान का धारक-वाहक हो सकता है यही “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” का सार्थकता है।

सर्वतोमुखी समाधान अपने-आप में सहअस्तित्व में जागृत होने का फलन है अर्थात् अस्तित्व को सहअस्तित्व के रूप में जानने-मानने और पहचानने का फलन है। यह स्वयं व्यवस्था सहज कड़ी-दर-कड़ी के रूप में प्रमाणित होना पाया जाता है। मानव परंपरा में व्यवस्था स्वयंस्फूर्त अभिव्यक्ति है। क्योंकि स्वायत्त मानव मानवीयतापूर्ण शिक्षा पूर्वक प्रमाणित होना देखा गया है और ऐसे स्वायत्त मानव ही परिवार मानव और व्यवस्था मानव के रूप में जीना और प्रमाणित होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अस्तु, स्वायत्त मानव सहज अभिव्यक्ति परिवार व्यवस्था में और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के अर्हता से परिपूर्ण रहता ही है। इसलिये हर स्वायत्त मानव व्यवस्था में, से, के लिए भागीदारी को निर्वाह करना सहज है। इस प्रकार हर नर-नारी स्वायत्त होना आवश्यक है।

जागृति विधि का लोकव्यापीकरण मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार, कार्यविधि से सम्पन्न होना भी देखा गया है। मानवीयतापूर्ण शिक्षा अपने में सत्ता में संपृक्त प्रकृति नित्य वर्तमान और विकास क्रम विकास एवं जागृति क्रम जागृति सहज विधि से पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञानावस्थाओं का पूरकता, उपयोगिता, उदात्तीकरण का अध्ययन है। जिसके फलस्वरूप प्रत्येक मानव में स्वायत्तता, परिवार व्यवस्था में जीने की

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